दादा की 50 साल पुरानी निशानी बचाने के लिए इस शख्स ने क्रेन से शिफ्ट करवाई झोपड़ी, हर जगह हो रही पोते की तारीफ

जैसा कि हम सभी लोग जानते हैं आए दिन देश दुनिया से कोई ना कोई खबर निकल कर सामने आती रहती है। इन खबरों में से कुछ खबरें ऐसी होती हैं, जिसे जानकर हर कोई हैरान हो जाता है परंतु कुछ खबरें ऐसी भी भी होते हैं, जिसके बारे में जानकर हर कोई तारीफ करता है। इसी बीच राजस्थान के बाड़मेर से दिल छू लेने वाली खबर निकल कर सामने आई है।

दरअसल, यहां पर एक शख्स ने अपने दादा द्वारा बनाए गए झोपड़े को बचाने के लिए शानदार कदम उठाया। जी हां, इस शख्स ने अपनी झोपड़ी को सुरक्षित रखने के लिए हाइड्रा क्रेन की सहायता ली और उसे एक जगह से हटाकर दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया। इस झोपड़ी को उनके दादा ने 50 साल पहले बनवाया था।

जैसा कि हम सभी लोग जानते हैं इस दुनिया में अभी भी ऐसे लोग मौजूद हैं जिनको पुरानी चीजों को सहेजकर रखना बहुत पसंद आता है। कई बार तो अपने इन जुड़ी चीजों को बचाने के लिए वह कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं। कई बार लोग ऐसा कदम उठा लेते हैं जिसकी वजह से हर तरफ उन्ही की चर्चा होने लगती है। आज हम आपको जिस शख्स के बारे में बता रहे हैं उसकी भी लोग खूब चर्चा कर रहे हैं।

आज हम आपको जिस शख्स के बारे में बता रहे हैं उसका नाम पुरखाराम (Purkharam है। रिपोर्ट के अनुसार, यह राजस्थान (Rajasthan) के बाड़मेर (Barmer) में सिणधरी उपखंड के करडाली नाडी गांव में रहते हैं। ऐसा बताया जा रहा है कि इन्होंने अपनी 50 साल पुरानी एक झोपड़ी को सुरक्षित रखने के लिए ऐसी पहल की, जिसकी बातें हर तरफ हो रही हैं।

पुरखाराम ने इस झोपड़ी को हाइड्रा क्रेन की सहायता से एक स्थान से दूसरे स्थान तक शिफ्ट करवा दिया है। ऐसा करने के पीछे खास वजह यह थी कि यह झोपड़ी उनके दादा ने 50 साल पहले बनवाई थी। पुरखाराम अपने दादा द्वारा बनाई गई इस निशानी को संभाल कर रखना चाहते थे। इस झोपड़ी की नींव कमजोर हो रही थी और इसे बचाने के लिए उन्होंने यह तरीका अपनाया।

ऐसा बताया जा रहा है कि इस झोपड़ी में छत के अलावा थोड़ी मरम्मत होनी है। इसके बाद यह 30 से 40 साल और सुरक्षित रह सकती है। अगर इसकी मरम्मत होती रही तो यह 100 साल तक सुरक्षित रह सकती है। पुरखाराम का ऐसा बताना है कि अगर बीच-बीच में इस झोपड़ी की मरम्मत पर ध्यान दिया जाए तो यह कई सालों तक और चल सकती है।

उन्होंने बताया कि इस झोपड़ी को हाइड्रा क्रेन से शिफ्ट कराने में खर्चा 6 हजार रुपए आया। ऐसा बताया जा रहा है कि झोपड़ी में दीमक लग गई थी और वह कमजोर हो गई थी। पुरखाराम का ऐसा बताना है कि इस झोपड़ी में गर्मी और सर्दी में नेचर राहत मिलती है। उन्होंने बताया कि गर्मी के दिनों में जब तापमान अधिक बढ़ जाता है तो ऐसे में झोपड़ियां बहुत राहत देती हैं। इसमें पंखे की आवश्यकता नहीं पड़ती है। अब इस तरह की झोपड़ी लोग नहीं बनवाते हैं। इसी वजह से इन्हें सुरक्षित रखना सबसे बड़ा काम है।

अगर हम एक झोपड़ी बनवाने का खर्चा देखें तो करीब ₹80000 तक आ जाता है। इतना ही नहीं बल्कि झोपड़ी दो-तीन दिन में तैयार होती है और एक झोपड़ी को बनाने में 50 से 70 लोगों को लगना पड़ता है। मिट्टी और गोबर का इसमें इस्तेमाल किया जाता है इसके बाद बल्ली और लकड़ियों का छप्पर लगाया जाता है।