इस दिन से नहाय खाय के साथ आरंभ छठ का महापर्व, जानिए कौन हैं छठी मैया और कैसे हुई छठ पूजन की शुरुआत

हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक छठ पूजा है। इस दिन भगवान सूर्य और छठी मैया की पूजा की जाती है। हिंदू पंचांग के मुताबिक कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठ का महापर्व मनाया जाता है। मुख्य रूप से यह पर्व बिहार में मनाया जाता है परंतु देश से लेकर विदेशों तक में इस त्योहारों की धूम देखने को मिलती है। छठ पूजा के दिन श्रद्धालु गंगा नदी के तट पर आकर पवित्र जल में स्नान करते हैं। ऐसा बताया जाता है कि यह व्रत संतान की लंबी आयु, उज्जवल भविष्य और सुखमय जीवन की कामना के लिए रखा जाता है।

छठ महापर्व महिलाओं के साथ साथ पुरुषों के द्वारा भी रखा जाता है। यह व्रत बहुत ज्यादा कठिन माना जाता है क्योंकि यह व्रत 24 घंटे से अधिक समय तक निर्जला रखा जाता है। छठ महापर्व का मुख्य व्रत षष्ठी तिथि को रखा जाता है लेकिन यह पर्व चतुर्थी से आरंभ होकर सप्तमी तिथि को प्रातः सूर्य उदय के समय अर्घ्य देने के बाद आरंभ किया जाता है।

आपको बता दें कि छठ व्रत नहाय-खाय से आरंभ होता है और खरना के पश्चात व्रत शुरू किया जाता है। इस बार 8 नवंबर को नहाय खाय से छठ व्रत आरंभ होगा। इसके अगले दिन 9 नवंबर को खरना किया जाएगा और 10 नवंबर षष्ठी तिथि को मुख्य छठ पूजन होगा और अगले दिन 11 नवंबर सप्तमी तिथि को छठ व्रत का समापन किया जाएगा।

जानिए कौन हैं छठी मैया?

आज भी बहुत से लोग हैं जिनके मन में यह सवाल जरूर आता होगा कि आखिर छठी मैया कौन हैं? और छठ पर्व पर किस देवी की पूजा की जाती है? तो आपको बता दें कि शास्त्रों में छठ की देवी भगवान ब्रह्माजी की मानस पुत्री और सूर्य देव की बहन बताया गया है और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए छठ पर्व मनाया जाता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में इस बात का उल्लेख किया गया है कि ब्रह्मा जी ने सृष्टि रचने के लिए स्वयं को दो भागों में बांट दिया था जिसमें दाहिना भाग में पुरुष और बाएं भाग में प्रकृति का रूप सामने आया था।

सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आप को 6 भागों में विभाजित किया था। इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी या देवसेना के रूप में जाना जाता है। आपको बता दें कि प्रकृति का छठा अंश होने की वजह से इनका एक नाम षष्ठी भी है जिसको हम सभी लोग छठी मैया के नाम से जानते हैं।

जब शिशु का जन्म होता है तो उसके छठे दिन भी इन्हीं की पूजा होती है। ऐसा माना जाता है कि इनकी उपासना करने से बच्चे को स्वास्थ्य, सफलता और दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। शास्त्रों के अनुसार, इन्हीं देवी का नाम कात्यायनी है जिनकी नवरात्रि की षष्ठी तिथि को पूजा होती है।

जानिए छठ पूजन की शुरुआत कैसे हुई?

अगर हम यह जानें कि आखिर छठ पूजन की शुरुआत कैसे हुई तो इस विषय में ब्रह्मवैवर्त पुराण में कथा बताई गई है। ऐसा बताया जाता है कि जब प्रथम मनु के पुत्र राजा प्रियव्रत को कोई संतान की प्राप्ति नहीं हुई थी तब इसकी वजह से वह बहुत ही ज्यादा दुखी रहने लगे थे। महर्षि कश्यप के कहने पर राजा प्रियव्रत ने एक महा यज्ञ का अनुष्ठान संपन्न किया था जिसके परिणाम स्वरुप उनकी पत्नी गर्भवती हो गई थीं।

भले ही उनकी पत्नी गर्भवती हो गईं परंतु उनका दुर्भाग्य ऐसा था कि बच्चा गर्भ में ही मर गया था, जिसकी वजह से पूरी प्रजा में मातम का माहौल छा गया था। उसी समय के दौरान आसमान में एक चमकता हुआ पत्थर नजर आया, जिस पर षष्ठी माता विराजमान थीं। जब राजा ने उनको देखा था तब उन्होंने उनका परिचय पूछा था।

माता षष्ठी ने राजा से यह कहा था कि “मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री हूं और मेरा नाम षष्ठी देवी है। मैं दुनिया के सभी बच्चों की रक्षक हूँ और सभी नि:संतान स्त्रियों को संतान सुख का आशीर्वाद देती हूं। इसके बाद में राजा प्रियव्रत ने उनसे प्रार्थना की जिस पर देवी षष्ठी ने राजा के मृत बच्चे को पुनः जीवित कर दिया था और उन्होंने उस बच्चे को दीर्घायु का आशीर्वाद भी दिया था।

जब राजा ने देवी षष्ठी की ऐसी कृपा देखी तो वह बहुत ज्यादा हर्षित हुए और उन्होंने षष्ठी देवी की पूजा आराधना करी। ऐसा माना जाता है कि राजा प्रियव्रत के द्वारा छठी माता की पूजा के बाद यह त्यौहार मनाया जाने लगा है। तब से ही छठ पूजन की शुरुआत हो गई।