इस मंदिर में बिना सिर वाली देवी मां की होती है पूजा, यहां से कोई भी भक्त नहीं लौटता निराश

जैसा कि हम सभी लोग जानते हैं नवरात्रि के दिनों में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। अभी चैत्र नवरात्र चल रहे हैं। 13 अप्रैल से चैत्र नवरात्रि शुरू हुए थे और इसकी समाप्ति 21 अप्रैल को होगी। नवरात्रि में भक्त माता रानी की पूजा-अर्चना और उपासना करते हैं। ऐसा माना जाता है कि अगर सच्चे मन से व्यक्ति माँ दुर्गा की विधि विधान पूर्वक पूजा करता है तो इससे माता जीवन के सारे कष्ट दूर करती हैं।

नवरात्रि के दिनों में देवी मां के मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है। वैसे देखा जाए तो देश भर में माता के बहुत से मंदिर हैं जो अपनी किसी न किसी विशेषता और चमत्कार के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। आज हम आपको मां के एक ऐसे मंदिर के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं, जहां पर बिना सिर वाली देवी मां की पूजा की जाती है और यहां पर जो भक्त आता है उसकी हर मनोकामना पूरी होती है।

आज हम आपको देवी मां के जिस मंदिर के बारे में जानकारी दे रहे हैं यह मंदिर झारखंड की राजधानी रांची से 80 किलोमीटर दूर रजरप्पा में स्थित है। इस मंदिर को माँ छिन्नमस्ता या छिन्नमस्तिका मंदिर के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि असम के कामाख्या मंदिर को दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति पीठ कहा जाता है और उसके पश्चात दुनिया की दूसरी सबसे बड़े शक्तिपीठ के रूप में रजरप्पा स्थित मां छिन्नमस्तिका का मंदिर प्रसिद्ध है।

माता के इस दरबार में दूर-दूर से लोग दर्शन करने के लिए आते हैं। यह मंदिर अपने आप में बेहद अनोखा है। इस मंदिर में मां की जो मूर्ति स्थित है उसमें मां का कटा हुआ सिर उन्हीं के हाथों में है और उनकी गर्दन से रक्त की धारा प्रवाहित हो रही है, जो दोनों और खड़ी दो सखियों के मुंह में जा रही है। इस मंदिर में जो भी लोग माता के दर्शन करने के लिए आते हैं वह माता का यह स्वरूप देखकर भयभीत हो जाते हैं। माता का यह स्वरूप लोगों में भय उत्पन्न कर देता है। देवी मां के इस स्वरूप को मनोकामना देवी के रूप में भी जाना जाता है।

पुराणों में रजरप्पा के इस मंदिर का उल्लेख शक्तिपीठ के रूप में किया गया है। माता रानी के दरबार में साल भर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखने को मिलती है परंतु चैत्र नवरात्र और शारदीय नवरात्रि में यहां पर भक्तों की भीड़ बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर 6000 साल से भी अधिक पुराना है। इस मंदिर को लेकर एक पौराणिक कथा काफी प्रचलित है, एक बार देवी माता अपनी सखियों के साथ नदी में स्नान करने गई हुई थीं। स्नान करने के पश्चात उनकी सखियों को बहुत तेज भूख और प्यास लगने लगी। तब उन्होंने देवी से कुछ खाने के लिए कहा लेकिन देवी ने उनको इंतजार करने के लिए कहा था।

देवी की सखियां भूख के कारण बेहाल होने लगी थीं और उनका रंग भी काला पड़ने लगा था। तब देवी ने अपने ही खड्ग से अपना सिर काट दिया। उनके सिर से रक्त की तीन धाराएं निकलीं। उनमें से दो धाराओं से उन्होंने अपनी सखियों की प्यास बुझाई और तीसरी से अपनी प्यास बुझाई थी। तभी से माता छिन्नमस्ता के नाम से मशहूर हुईं। जो व्यक्ति यहां सच्चे मन से माता रानी के दर्शन करने के लिए आता है उसके ऊपर देवी मां की कृपा दृष्टि बनी रहती है और जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।