परमाणु ऊर्जा के मामले में चीन ने मारी ऊंची छलांग, लांच किया अपना ‘सूरज’, जानिए क्या है इसकी खासियत

हर किसी ने परमाणु ऊर्जा की रेस में आगे निकलने के लिए पूरी ताकत झोंकी हुई है. गौरतलब है चीन भी इसमें शामिल है और उसने अब अपने न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर को पहली बार शुरू भी कर दिया है. इस रिएक्टर से इतनी ज्यादा ऊर्जा पैदा की जा सकती है कि इसे ‘आर्टिफिशल सूरज’ कहा गया है. इसकी मदद से चीन ने परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में अपनी रिसर्च की क्षमता को भी बढ़ाया लिया है. चलिए बताते हैं क्या है चीन का न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर और इसका चीन को क्या फायदा होगा?

क्या है चीन का रिएक्टर?

बता दें एचएल-2एम टोकामक रिएक्टर चीन का सबसे बड़ा और सबसे अडवांस्ड न्यूक्लियर फ्यूजन एक्सपेरिमेंटल रिसर्च डिवाइस है और वैज्ञानिकों को आशा है कि इस डिवाइस की मदद से शक्तिशाली क्लीन एनर्जी सोर्स का खनन किया जा सकता है. इस रिएक्टर में शक्तिशाली मैग्नेटिक फील्ड का यूज गर्म प्लाज्मा को फ्यूज करने और 15 करोड़ डिग्री सेल्सियस के तापमान तक पहुंचा जाता है. यह सूरज की कोर से दस गुना ज्यादा गर्म होगा. दक्षिण पश्चिम के सिचुआन प्रांत में स्थित रिएक्टर को पिछले साल पूरा कर लिया गया है. इससे निकलने वाली गर्मी और पावर की वजह से इसे आर्टिफिशल सूरज कहा गया है.

ITER के साथ काम करेगा चीन

दरअसल न्यूक्लियर फ्यूजन एनर्जी का विकास न सिर्फ ऊर्जा जरूरतों को पूरा करेगा बल्कि भविष्य में चीन की ऊर्जा और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के सतत विकास के लिए महत्वपूर्ण होगा. चीन के वैज्ञानिक साल 2006 से ही न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर के छोटे वर्जन पर काम करते आ रहे है. उनकी कोशिश है कि डिवाइस का इस्तेमाल इंटरनैशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर (ITER) के साथ किया जा सके. फ्रांस में स्थित ITER दुनिया का सबसे बड़ा परमाणु फ्यूजन रिसर्च प्रॉजेक्ट है जिसे 2025 में पूरा कर लिया जाएगा.

फ्यूजन रिएक्शन क्या होता है ?

हालाँकि, फ्यूजन से ही सूरज को ऊर्जा मिलती है. इसकी वजह से ऐसा प्लाज्मा पैदा होता है जिसमें हाइड्रोजन के आइसोटोप्स (ड्यूटीरियम और ट्राइटियम) आपस में फ्यूज होकर हीलियम और न्यूट्रॉन बनाते हैं. शुरुआत में रिएक्शन से गर्मी पैदा हो, इसके लिए ऊर्जा की खपत होती है लेकिन एक बार रिएक्शन शुरू हो जाता है तो फिर रिएक्शन की वजह से ऊर्जा पैदा भी होने लग जाती है. ITER पहला ऐसा रिएक्टर है जिसका उद्देश्य है कि न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्शन के शुरू होने में जितनी ऊर्जा यूज हो, उससे ज्यादा ऊर्जा रिएक्शन की वजह से बाद में उत्पाद के तौर पर निकल जाए.

फ्यूजन रिएक्शन कैसे है बेहतर?

दरअसल परमाणु हथियारों और न्यूक्लियर पावर प्लांट्स में फ्यूजन की जगह फिजन होता है. फ्यूजन रिएक्शन में किसी ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन नहीं होता है और इसमें किसी ऐक्सिडेंट की संभावना या अटॉमिक मटीरियल की चोरी का खतरा भी नहीं रहता है. बड़े स्तर पर अगर कार्बन-फ्री स्रोत के तौर पर यह एक्सपेरिमेंट सफल हुआ तो भविष्य में क्लीन एनर्जी के क्षेत्र में दुनिया को अभूतपूर्व फायदा हो सकेगा. पहली बार 1985 में इसका एक्सपेरिमेंट का पहला आइडिया लॉन्च किया गया था. इस दिशा में अब काफी काम हो चुका है.