पाकिस्तान से आई दिलीप कुमार के बचपन से घर की तस्वीरें, भावुक होकर अभिनेता नें सुनाए ऐसे किस्से

दिलीप कुमार का नाम 90 के दशक के सुपरस्टार्स में शुमार रहा है| इन्होने बॉलीवुड फिल्मों से अपनी गजब की पहचान बनाई है| अपने बॉलीवुड करियर में इन्होने कई शानदार फ़िल्में दी हैं और हमेशा ही लोगों के दिलमों पर राज़ करते आये हैं| शायद यही कारन है के आज भी दिलीप खबरों और सुर्ख़ियों में नजर आ जाते हैं| बता दें के 19 दिसम्बर, 1922 को पाकिस्तान में जन्मे दिलीप के आज भारत में ही नही बल्कि पकिस्तान में भी फैन्स मौजूद हैं| अभी बीते दिनों दिलीप फिर से चर्चाओं में आ गये थे जब इनके जन्मस्थान यानी पाकिस्तान से एक खबर सामने आई थी|

दरअसल पकिस्तान से दिलीप को लेकर एक खबर सामने आ रही है जिसका उनके जीवन से काफी पुराना ताल्लुख रहा है| दरअसल आज लगभग 97 सालों के हो चुके अभिनेता दिलीप कुमार पुश्तैनी घर को लेकर पकिस्तान से ये खबरें सुनने को मिल रही हैं| बात करें पकिस्तान की एक प्रांतीय सरकार की तो वो दिलीप के इस पुश्तैनी घर को खरीदकर उसका संरक्षण करना चाहते हैं और इसी सिलसिले में इनका नाम सामने आया है|

ऐसे में अपने इस पुश्तैनी मकान में अपना बचपन गुज़ार चुके दिलीप को अपने वो दिन याद आ गये और उन्होंने सोशल मीडिया पर पाकिस्तान के लोगों से ऐसी अपील की कके वो उनके इस घर की कुछ तस्वीरें खीचकर उन्हें सोशल मीडिया पर टैग करें, जिससे वो भी अपने उस घर को दोबारा एक बार देख सकें| बताते चले के दिलीप कुमार का यह मकान पकिस्तान के पेशावर प्रांत के खैबर-पख्तूनख्वा में स्थित है|

इस सब के बाद एक पाकिस्तानी रिपोर्टर नें घर की कुछ तस्वीरें लेकर दिलीप कुमार को टैग किया था| इन तस्वीरों को देख काफी भाव विभोर हुए दिलीप जी नें उस रिपोर्टर का शुक्रियादा किया और साथ ही अपने इस पुस्तैनी घर से जुड़े कुछ किस्से भी शेयर किये|

मां को ऐसे बयां किया

दिलीप जी लिखते हैं- ‘अपने माता पिता, चाचा चाह्ची और दादा दानी संग मेरी जो यादें हैं मैं उनसे भरा हुआ हूँ| और इनकी बातों और यादों से आज भी यह घर भरा भरा लगता है| घर की बड़ी सी रसोई में बैठी मेरी माँ बहुत नाज़ुक थी और एक बच्चे की भूमिका में मैं बस उनके कामों के पूरे होने का इंतज़ार करता था| उर इसके बाद जब वो मुझे खाना खिलाने आती थी तो उसका चेहरा देख मेर मं भी मुस्करा उठता था|

दादी की कहानियां

आगे उन्होने लिखा है के जब शाम में सब चाय के लिए साथ होते थे मुझे वह वक्त याद है| मुझे वः रातें याद हैं जब मई अपने दादा की पीट पर सवारी कर रहा होता था और उस समय दादी मुझे डरावनी कहानिया सुनाया करती थी| ऐसा करने के पीछे उनका मकसद रहता था के मैं घर के बहार न जाकर चुपचाप सो जाऊं|

पिता- चाचा संग सुनते थे कहानियां

दिलीप नें बचपन का ज़िक्र करते हुए आगे बताया के हर रोज़ जब किस्सा कहानी बाज़ार का व्यापार बंद हो जाता था तब एक कहानीकार इलाके के लोगों के बीच बैठकर छल-प्रतिशोध और वीरता आदि की कहानिया सुनाया करता था जहा वो अपने पिता और चाचा संग जाया सकते थे|