हार नहीं झेल पाई ‘दंगल’ की गीता फोगाट की बहन, खुद के दुपट्टे से मिटा डाली अपनी जिंदगी

बाॅलीवुड फिल्म इंडस्ट्री के अभिनेता आमिर खान की दंगल मूवी ने ना सिर्फ अपने देश में बल्कि पूरी दुनिया में खूब नाम कमाया है. पूरी दुनियाभर से इस फिल्म को खूब प्यार मिला है. दरअसल यह कहानी हमारे देश की रियल लाइफ हीरो फोगाट सिस्टर्स की है. आपको पता ही होगा कि गीता फोगाट और बबीता फोगाट कुश्ती की दुनिया का एक ऐसा नाम है, जिन्होनें इंटरनेशनल स्तर और अपना और अपने देश का नाम रोशन किया हुआ है. आपको बता दें कि जब परिवार में बड़े इतने सक्सेस हो गए हो. तब छोटो पर उम्मीदें और ज़्यादा बढ़ती हैं. हालाँकि कई बार इन उम्मीदों का भार छोटे सहन नहीं करते हैं और वे ऐसा कदम उठाने की सोच लेते हैं जो उन्हें नहीं उठाना चाहिए. लेकिन कुछ लोगों को किसी बात का इतना ठेस लगता है कि वो खुद का जीवन ही खत्म कर लेते हैं.

आपको बता दें कि गीता और बबिता की ममेरी बहन रितिका ने भी एक ऐसा ही कदम उठा चुकी है जिसने उन्हें हमेशा के लिए दुनिया से दूर कर दिया है. आपको बता दें कि रितिका भी अपनी बहनों गीता और बबिता की तरह कुश्ती की खिलाड़ी थी, गौरतलब है कि उनका भी सपना था कि वो भी अपनी बहनों की तरह परिवार और समाज का नाम रोशन करें और देश के लिए मैडल जीत कर लाए. दरअसल इसके लिए वो काफी मेहनत भी कर रही थी, हालाँकि करियर की शुरुआती कुश्ती यानी स्टेट लेवल सब जूनियर कॉम्पिटिशन में हार मिलने के बाद वो बुरी तरीके से निराश हो गई थी. वहीं मीडिया से प्राप्त जानकारी के मुताबिक यह टूर्नामेंट 12 से 14 मार्च के दरमियान भागलपुर में संपन्न हुआ था.

दरअसल इस कुश्ती कॉम्पिटिशन में रितिका फाइनल तक भी आ चुकी थी. मगर फाइनल मैच में वो सिर्फ एक नंबर से बाहर हो गई थी. वहीं इस हार ने रितिका को बुरी तरह से तोड़ कर रख दिया था और अंत में उन्होंने खुद को खत्म करने का फैसला कर लिया था. हालाँकि मीडिया से प्राप्त जानकारी के मुताबिक अर्जुन अवॉर्ड विजेता महावीर फोगाट भी उस प्रतियोगिता में गए हुए थे. आपको बता दें कि रितिका ने पंखे में अपना दुपट्टा डाल कर अपने जीवन को पूरी तरह खत्म कर दिया. हालाँकि फिलहाल पुलिस इस पूरे मामले की जांच करने में लगी हुई है.

दरअसल यह खबर पढ़ रहे हर व्यक्ति से हम बस इतना ही कहना चाहते है कि ज़िन्दगी बहुत खूबसूरत होती है. और एक हार आपका पूरा जीवन नहीं बन सकती है. हालाँकि वहीं खबर पढ़ रहे लोगों से हम बस इतना ही कहना चाह रहे है अपने बच्चों को समझे, उनसे बातें करते रहे. किसी और के जैसे उन्हें बनाने से बेहतर है, उन्हें खुद को खोजने मे मदद करें. और इस खोज में आप उनके साथी बन जाए, आपको अपने बच्चों के साथ एक दोस्त जैसे व्यवहार करना चाहिए, उन्हें सही रास्ता दिखाना चाहिए.