कभी टाटा कंपनी पर आया था घोर संकट, डूबने से बचाने के लिए इस महिला ने बेच डाला था अपना बेशकीमती सामान

यूं तो भारत देश में कई नामी-गिरामी कंपनियां हैं लेकिन टाटा ग्रुप ऑफ़ कंपनीज का नाम सबसे टॉप लिस्ट पर आता है. वर्तमान समय में इस कंपनी का टर्नओवर करोड़ों रुपए का है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस कंपनी की शुरुआत ऐसी नहीं थी जैसी अब है. जी हां, कंपनी को यहां तक पहुंचाने के लिए टाटा के मालिकों को कई प्रकार के पापड़ बेलने पड़े हैं. आज के इस खास पोस्ट में हम आपको टाटा कंपनी के स्ट्रगल के बारे में सच्ची कहानी बताने जा रहे हैं. यह कहानी लेडी मेहरबाई टाटा से जुड़ी हुई है जिसकी बदौलत आज टाटा स्टील कंपनी को अपनी अलग पहचान मिल पाई है. हालांकि आप में से अधिकतर लोग इस महिला के बारे में पहली बार सुन रहे या पढ़ रहे होंगे. लेकिन बता दें कि लेडी मेहरबाई टाटा को व्यापक रूप से पहली भारतीय नारीवादी  प्रतीक माना जाता है. केवल यही नहीं बल्कि इन्होंने स्टील कंपनी टाटा को बचाने के लिए अहम योगदान भी दिया है. एक समय में टाटा कंपनी डूबने की कगार पर थी उस समय अगर लेडी मेहरबाई टाटा हिम्मत ना दिखाती तो शायद आज यह कंपनी इस मुकाम पर खड़ी नहीं होती.

किताब ने किया खुलासा

हाल ही में ‘टाटा स्टोरीज’ नामक नवीनतम पुस्तक रिलीज की गई है जिसमें हरीश भट्ट ने बताया कि लेडी मेहरबाई टाटा ने स्टील की दिग्गज कंपनी को एक समय में डूबने से बचाया था. लेडी मेहरबाई असल में जमशेदजी टाटा के बड़े बेटे दोराबजी टाटा की पत्नी थी. कहा जाता है कि सर दोराबजी टाटा ने एक समय में लंदन के व्यापारियों से 245.35 कैरेट का जुबली हीरा खरीदा था. यह हीरा कोहिनूर से भी बेशकीमती माना जाता है. उन्नीस सौ दशक में इस हीरे की कीमत लगभग 1,00,000 पाउंड थी. यह हीरा उन्होंने अपनी पत्नी लेडी मेहरबाई के लिए हार में लगवाया था जो कि वह अक्सर स्पेशल इवेंट पर पहना कर दी थी. लेकिन 1924 में कंपनी ने कुछ इस तरह से करवट ली कि लेडी मेहरबाई ने इसे बेचने का फैसला तक ले लिया.

कहा जाता है कि उस समय टाटा स्टील ऑफ इंडस्ट्रीज के मालिको पर कुछ ऐसा संकट आया कि उनके पास कंपनी के कर्मचारियों को सैलरी देने तक के पैसे नहीं बचे थे. उस समय लेडी मेहरबाई आगे आई और कर्मचारियों को पैसे देने के लिए और अपने कंपनी की इज्जत बचाने के लिए उन्होंने जुबली डायमंड और अपनी पूरी जायदाद को इंपीरियल बैंक के पास गिरवी रख दिया था ताकि वे उनसे बदले में उचित फंड लेकर  वेतन बांट सके. जब लंबे समय के बाद कंपनी ने रिटर्न भरना शुरू किया तो उनकी स्थिति में पहले से काफी सुधार आया. भट्ट ने अपनी पुस्तक में इसे आगे लिखा कि गहन संघर्ष के समय एक भी कार्यकर्ता की छंटनी नहीं की गई थी.

कैसी थी मेहरबाई टाटा?

पुस्तक में लिखे अनुसार सर दोराबजी टाटा  ट्रस्ट की स्थापना के लिए दोराबजी टाटा की मृत्यु के बाद उस जुबली हीरे को बेचा गया था. लेडी मेहरबाई का नाम उन महिलाओं में आता है जिन्होंने 1929 में पारित शारदा अधिनियम या बालविवाह प्रतिबंध अधिनियम के लिए परामर्श किया था. उन्होंने उस समय भारत के अलावा विदेशों में भी सक्रिय रूप से इसका प्रचार किया था. एक समय में वह राष्ट्रीय महिला परिषद और अखिल भारतीय महिला सम्मेलन का भी हिस्सा रह चुकी हैं. साल  1927 की 29 नवंबर को लेडी मेहरबाई ने मिशीगन में हिंदू विवाह विधि के लिए एक मामला बनाया था. इसके अगले ही साल उन्होंने अखिल भारतीय महिला सम्मेलन में महिलाओं के लिए सम्मान राजनीतिक स्थिति की डिमांड आगे रखी थी. आपकी जानकारी के लिए बताते चले कि ले ली मेहरबाई टाटा भारत में भारतीय महिला लीग संघ की अध्यक्ष और बॉम्बे प्रेसीडेंसी महिला परिषद की संस्थापकों में से एक मानी जाती  है. उन्हीं के नेतृत्व में भारत को अंतर्राष्ट्रीय महिला परिषद में शामिल किया गया था.