मिलिए 100 मीटर ऊपर से भाला फेंकने वाले नीरज के कोच सर से, इन्होंने सिखाई थी जीतने की तकनीक

ये बात तो सच है कि जब इंजीनयरिंग की बात होती है तो जर्मनी के लोगों का सबसे पहले निम लिया जाता है. उन्हें इसमें महारत प्राप्त है. दरअसल वे दुनिया के बेहतरीन उपभोक्ता उत्पाद प्रोडक्शन करते हैं. स्पोर्ट्स साइंस में भी कहानी ऐसी ही है. वहीं खेल में भारत और जर्मनी के सहयोग की कहानी भी लंबी है इसकी शुरुआत 1960 के दशक से हो गई थी.

दरअसल शनिवार को जब भाला फेक नीरज चोपड़ा ने भारत के ऐथलेटिक्स हिस्ट्री में नयी सफलता प्राप्त की है, तो जर्मनी के कोच और सपॉर्ट स्टाफ खुशी पागल हो गए थे. बता दें कि साल 2016 में पोलैंड में वर्ल्ड जूनियर ऐथलेटिक्स चैंपियनशिप जीतकर नीरज ने अपनी पहचान बनाई थी. इसके बाद का इनका सफर बेहतरीन रहा है.

वहीं गोल्ड जीतने के बाद नीरज ने भी माना कि जेवलिन थ्रो सिर्फ ताकत का खेल नहीं होता है. दरअसल इसमें काफी तकनीक भी लगाई जाती है उन्होंने स्वर्ण पदक जीतने के बाद पत्रकारों से बोला है, ‘ऐथलेटिक्स एक ऐसा खेल होता है जहां आप धीरे-धीरे अपने खेल में सुधार करते हो. आप अपना 100 प्रतिशत देते हो मगर आप धीरे-धीरे कई अलग-अलग एरिया पर सुधार करते हुए खुद में सुधार करते हो. जैवलिन बहुत तकनीक का खेल है और जब मैंने शुरुआत की तो कई गलतियां होती थीं, वहीं गलतियों को इनकी (गैरी कालवर्ट, उवे हॉन और डॉक्टर क्लोस बारतोनित्ज) सहायता से दूर कर लिया गया.

आपको बता दें कि साल 2016 के जूनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने वाले नीरज ने बोला, ‘मैंने ऑस्ट्रेलियाई कोच गैरी कालवर्ट के साथ कोचिंग की शुरुआत की और तब मैंने जूनियर वर्ल्ड रेकॉर्ड दर्ज किया. फिर मैंने हॉन के साथ काम किया और उनसे कई नई चीजें सीख ली. फिर मैंने डॉक्टर क्लॉस के साथ बहुत कुछ सीखा. ये वे लोग हैं जिनके पास तजुर्बा है और जैवलिन के बारे में गहरी नाॅलेज है. दरअसल उन्होंने मेरी बाॅडी को समझा और उस हिसाब से ट्रेनिंग प्लान बनाया. उन्होंने अलग-अलग देशों में अलग-अलग थ्रोअर्स के साथ काम किया हुआ है. उनके इनपुट्स से मुझे काफी मदद मिली है.

वहीं शानदार जर्मन थ्रोअर उवे हॉन इकलौते थ्रोअर रहे हैं जिन्होंने 100 मीटर या उससे ज्यादा जैवलिन फेंका हुआ है. उन्होंने बोला था कि इस बात की कोई सीमा नहीं कि यह भारतीय कितना दूर भाला फेंक पाएगा. Hohn के 100 मीटर के थ्रो के बाद जैवलिन में बदलाव आ गए है. जैवलिन के सेंटर ऑफ द ग्रैविटी बदला गया.

हालाँकि उन्होंने साल 2018 में चोपड़ा के कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण पदक जीतने के बाद कहा था, ‘जर्मनी के जोहान्स वेटर की ही तरह भारतीय भी कितनी दूर फेंक सकता है इसकी कोई सीमा नहीं होती है. नीरज ने फिलहाल वह मुकाम प्राप्त नहीं किया है लेकिन मुझे आशा है कि दो साल के भीतर वह उसी स्तर पर जाने वाला है और कुछ पदक भी जीतने वाला है. दरअसल शनिवार को पदक जीतने के बाद अब डॉक्टर क्लोस से ट्रेनिंग ले रहे नीरज पदक जीतने के बाद चैन की साँस ले रहे होंगे. हालाँकि अभी उन्हें कई मुकाम हासिल करने है.