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ये शख्स घने जंगल के बीच अपनी खटारा कार में करता है गुज़ारा, 17 साल से नहीं कटवाया सिर-दाढ़ी का एक भी बाल

इंसान की जिंदगी बाहर से जितनी आसान दिखती है अंदर से उतनी ही उलझी हुई भी होती है. परिवारिक झगड़े और तनाव कईं बार व्यक्ति को घर-बार छोड़ कर अकेले रहने के लिए मजबूर कर देते हैं. हालाँकि कुछ लोग अपना परिवार छोड़ कर नहीं जा पते हैं क्यूंकि जिम्मेदारियों का बोझ उन्हें चार-दीवारी में बांध कर रख डेटा है. तो वहीँ कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनके लिए समाज और सोसाइटी का प्रेशर हावी होने लगता है और आख़िरकार वह सब चीजों को त्याग कर वहां से भाग जाना ही सही समझ लेते हैं. एक ऐसे ही शख्स से आज के इस ख़ास पोस्ट में हम आपको मिल्न्वाने जा रहे हैं जिसकी जिंदगी में होने वाली हलचलों ने उसको कुछ इस प्रकार से प्रभावित किया कि उसने सबकुछ बीच में ही छोड़ कर घर से दूर एक जंगल में रहने का फैसला कर लिया है. इतना ही नही बल्कि उसे उस घने जंगल में रहते हुए अब 17 साल का लंबा समय बीत चुका है. आईये जानते हैं इस व्यक्ति की पूरी कहानी के बारे में विस्तार से.

यदि आप इस व्यक्ति की पूरी कहानी को बेहतर तरीके से समझना और जानना चाहते हैं तो आपको एक बार कर्णाटक के दक्षिण में बसे दो गाँव अड़ताले और नक्कारे के आस-पास मौजूद सुल्लिअ ताल्लुक में बने घने जंगल से एक बार गुज़रना पड़ेगा. यह जंगल दिखने में मामुली लगता है लेकिन यहाँ 17 सालों तक अपना गुजर-बसर कर पाना सच में हैरत की बात है. वहीँ इस जंगल में रह चुके इस शख्स ने जंगल के लगभग तीन से चार किलोमीटर की दूरी पर ही अपना छोटा सा आशियाना बसाया हुआ है. इसके लिए उसने प्लास्टिक की शीट्स का इस्तेमाल करते हुए अपनी झोपड़ी बनाई है. झोपड़ी को खड़ा करने के लिए बांस का भी इस्तेमाल किया गया है. वहीँ झोपड़ी के अंदर एक बहुत पुरानी एम्बेसडर कार पड़ी हुई है जोकि अब कबाड़ हालत में है. कार के अंदर एक रेडियो भी पड़ा हुआ है जो आज भी चलता है. ख़बरों की माने तो इस कबाड़ा कार का मालिक और जंगल में रहने वाला शख्स चंद्रशेखर है. वर्तमान समय में चंद्रशेखर की उम्र 56 साल है. दिखने में वह अब काफी दुबला-पतला है और चेहरे पर व सिर पर बड़े-बड़े बाल भी हैं.

क्यों जंगल को बनाया अपना बसेरा?

गौतलब है कि चंद्रशेखर को घने जंगल में रहते हुए इतने वर्ष बीत चुके हैं लेकिन अब तक उसने बाल या दाढ़ी का एक भी बाल नहीं कटवाया है. यहाँ रहने से पहले उसके पास डेढ़ एकड़ की ज़मीन थी जहां खेती करके वह अपने परिवार का खर्चा पूरा करता था. साल 2003 में चंद्रशेखर को एक बैंक से लोन लेना पड़ा था. महज़ 40 हजार के इस छोटे से लों को वह चाह कर भी चुकता नहीं कर पाया था जिसके बाद बैंक वालों ने उसकी ज़मीन को नीलाम कर दिया था. हार कर वह अपनी बहन के साथ रहने के लिए उसके घर चला गया था. लेकिन यहाँ भी रोज़-रोज़ की अनबन ने उसे अंदर से तोड़ दिया और उसने जंगल जाकर अकेले ही जीने का मन बना लिया.

कुछ ऐसे कर रहे हैं गुज़ारा

जब चंद्रशेखर ने बहन का घर छोड़ा था तो जंगल में आकर उनके पास केवल 2 जोड़ी कपड़े और एक हवाई चप्पल ही बचे थे, आज 17 सालों बाद भी वह इन दोनों कपड़ों और चप्पल के साथ ही जी रहे हैं. रहने और सोने की बात करें तो चंद्रशेखर अपनी कर के अंदर ही सोते आए हैं. इसको ज्यादा धुप से बचाने के लिए उन्होंने इसपर एक प्लास्टिक शीट को भी रखा हुआ है. नहाने के लिए वह पास की नदी का इस्तेमाल करते हैं और पेड़ों की सूखी पत्तियों से बास्केट बना कर आस-पास के गाँव लेजा कर उन्हें बेचते हैं. इससे उन्हें जो भी पैसा मिलता है. वह उसक दाल, चावल या राशन ले आते हैं. आज भी चंद्रशेखर का यह मानना है कि बैंक द्वारा उन्हें एक दिन अपनी ज़मीन वापिस दे दी जाएगी.

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