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अब विज्ञानिकों ने खोज निकाला हमेशा जवां रहने का ये अजाब-गज़ब तरीका, 60 की उम्र में भी दिखेंगे 30 साल के नौजवान

जैसा कि आप सब लोग जानते ही हैं कि आजकल वैज्ञानिक नई- नई खोज कर रहे हैं ऐसे में वैज्ञानिकों ने एक ऐसी तकनीक ढूंढी है जिसमें आप 60 साल की उम्र में भी 30 साल के नौजवान दिखाई देंगे. इस तकनीक की सबसे बड़ी बात यह है कि शरीर के जिस हिस्से पर इस तकनीक का उपयोग किया जाएगा वह हिस्सा अपना काम करना कभी भी नहीं भूलेगा. बल्कि वह हिस्सा इस तरह से काम करने लगेगा जैसे वह युवावस्था में करता था. इंग्लैंड के बाब्राहम इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने खोजी गई इस तकनीक को टाइम जंप का नाम दिया है. इस तकनीक से 60 साल की उम्र में आपकी स्किन 30 साल की तरह जवां हो जाएगी और उसी की तरह काम करने लगेगी.

जानकारी के लिए बता दें इंस्टिट्यूट में विज्ञानिक एपिजेनेटिक्स रिसर्च प्रोग्राम चला रहे हैं. इस प्रोग्राम के तहत पुरानी कोशिकाओं को एक बार फिर से रिस्टोर करने की कोशिश की जाएगी. ऐसा इसलिए किया जाएगा ताकि यह कोशिकाएं मॉलिक्यूलर स्तर पर अपनी जैविक उम्र को बनाकर रखें. जर्नल eLife में स्टडी को प्रकाशित भी किया गया है. इसमें इस बात की भी जानकारी दी गई है कि रिसर्च और स्टडी अभी अपने पहले चरम पर है. लेकिन तकनीक का विकास किया जा चुका है इसकी सहायता से आने वाले समय में उम्र कम करने वाली दवाइयों में बदलाव किया जाएगा.

जैसा कि आप सब लोग जानते ही हैं कि बढ़ती उम्र के साथ-साथ कोशिकाओं के काम करने की क्षमता कम हो जाती है. जिसका कारण होता है जीनोम का कमजोर होना. रीजेनरेटिव बायोलॉजी का काम पुरानी कोशिकाओं की जगह नई कोशिकाएं डालना और पुरानी कोशिकाओं को दोबारा से पहले जैसा करना है. इस काम को करने के लिए हमारा शरीर भी हमारी मदद करता है कोशिकाओं के अंदर इतनी ज्यादा क्षमता होती है कि वह किसी भी कोशिका मैं अपने आप बदलाव कर सकती है. जानकारी के लिए बता दें इस तकनीक का विकास नोबेल प्राइज जीतने वाले वैज्ञानिक ने किया है. इस तकनीक का प्रयोग करके बुढ़ापे की परेशानियों को कम या खत्म किया जा सकता है.

जानकारी के लिए बता दे साल 2007 में शिन्या यामानाका नए सामान्य कोशिकाओं को रीप्रोग्रामिंग कोशिका में बदलने का काम किया था. जिसके बाद सामान्य कोशिकाओं को इंड्यूस्ड स्टेम सेल में बदलने का भी काम किया गया था गौरतलब है कि स्टेम सैलरी प्रोग्रामिंग कि यह प्रक्रिया 50 दिन में पूरी होती है. इस प्रक्रिया के दौरान किसी भी प्रकार की कोशिका को बदला जा सकता है. आंशिक तौर पर प्रोग्राम की गई कोशिकाओं को विकसित होने का समय दिया जाता है. इस प्रक्रिया में यह भी देखा जाता है कि प्रोग्राम की गई कोशिका पहले वाली कोशिका जैसे काम कर रही है कि नहीं. अगर कोलैजन का उत्पाद ठीक होता है. वैज्ञानिकों द्वारा इस बात को मान लिया जाता है कि रिप्रोग्राम्ड की गई कोशिका सही तरह से काम कर रही है और वह नई कोशिकाएं विकसित कर रही है. गौरतलब है कि आने वाले समय में इस तकनीक की सहायता से कई प्रकार की बीमारियों का इलाज किया जा सकता है जैसे किअल्जाइमर्स या फिर उम्र संबंधी बीमारियां.

 

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