कोरोना से मां की हुई मृत्यु, मां की याद में शुरू किया ऑक्सीजन ऑटो, 800 से ज्यादा लोगों की बचाई जान

जैसा कि हम सभी लोग जानते हैं कोरोना वायरस इस समय देश के लिए संकट बना हुआ है। कोरोना काल में लोगों का जीवन पूरी तरह से अस्त-व्यस्त हो चुका है। जब कोरोना की पहली लहर ने देश में दस्तक दी थी तो इस दौरान लॉक डाउन लगाया गया था, जिसके चलते लोगों का रोजगार ठप्प हो गया। लॉक डाउन में कोई भी रोजगार ना होने की वजह से लोगों को आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ा परंतु समय के साथ-साथ सब कुछ ठीक होता हुआ नजर आ रहा था परंतु अचानक ही कोरोना की दूसरी लहर ने देश में हड़कंप मचा दिया।

कोरोना की दूसरी लहर के सामने लोगों की हिम्मत जवाब देने लगी थी। रोजाना ही कोरोना के बहुत ज्यादा मामले सामने आ रहे थे। अस्पतालों में बेड की कमी थी। सड़कों, फुटपाथ और अस्पतालों में मरते लोगों की तस्वीरें देखकर लोग बहुत ज्यादा चिंतित हो रहे थे। लोग ऑक्सीजन सिलेंडर के इंतजाम में इधर-उधर दर-दर भटकते नजर आ रहे थे। इतना ही नहीं बल्कि कुछ तो ऑक्सीजन सिलेंडर भरवाने के लिए सुबह से शाम लंबी लाइनों में खड़े रहे ताकि बस किसी तरह वह अपनों की जान बचा पाए।

कोरोना की दूसरी लहर में बहुत से परिवार ने अपनों को खो दिया। इसी बीच चेन्नई की सीता देवी भी इसमें से एक थीं, जिन्होंने ऑक्सीजन की कमी के चलते अपनी मां को खो दिया था परंतु उनके जज्बे और हिम्मत ने 800 लोगों की जान बचा ली है। आपको बता दें कि सीता देवी चेन्नई की रहने वाली हैं। उनकी उम्र 36 साल की है। सीता देवी की 65 साल की मां विजया डायलिसिस की पेशेंट की थीं जो कोरोना की दूसरी लहर के दौरान कोरोना संक्रमित ही गई थीं। ऐसी स्थिति में सीता तुरंत माँ को राजीव गांधी गवर्नमेंट जनरल हॉस्पिटल ले गई थी, जहां पर ऑक्सीजन बेड खाली ना होने पर उन्हें कुछ घंटे के लिए अस्पताल के बाहर ही इंतजार करने को कहा गया था।

सीता देवी का ऐसा बताना है कि हमें मां की खातिर एक ऑक्सीजन बेड के लिए 12 घंटे इंतजार करना पड़ा। यहां एंबुलेंस के घटते ऑक्सीजन लेवल की वजह से हम उन्हें बार-बार एक से दूसरी एंबुलेंस में शिफ्ट कर रहे थे और आखिर में वायरस ने उनकी जान ले ली। अगर मेरी मां को तुरंत ऑक्सीजन मिल जाती तो उनकी जान बच सकती थी।

सीता देवी का कहना है कि मैं नहीं चाहती थी कि कोई दूसरा उस स्थिति से गुजरे, जिससे मेरी मां गुजरी थी। इसलिए मैंने ऑटो रिक्शा के माध्यम से अस्पताल के बाहर ऑक्सीजन पहुंचाना शुरू कर दिया। सीता देवी मैं ने लोगों की सहायता करने का ठान लिया और मई महीने से अपने ऑक्सीजन ऑटो के माध्यम से उन्होंने 800 से अधिक लोगों की जान बचाई।

अगर इन सभी को समय पर ऑक्सीजन नहीं मिल पाता तो उनकी जान चली जाती। ऐसी स्थिति में सीता ने फ्री में समय पर ऑक्सीजन सप्लाई करके एक बड़ी राहत दी है। इस काम में उन्हें सरत कुमत और मोहनराज का साथ मिला और दोनों की मदद से सीता सुबह 8:00 बजे से रात 8:00 बजे तक लोगों को ऑक्सीजन सप्लाई करती थीं। रोजाना करीब 25 से 30 लोगों की वह सहायता करती थीं।