1989 में हुईं रिटायर, फिर भी 93 की उम्र में कॉलेज जाकर पढ़ा रहीं हैं Prof संतम्मा, घर भी कर चुकी हैं दान

दुनिया में शिक्षक के पेशे को सबसे अच्छे और आदर्श पेशे के रूप में माना जाता है, क्योंकि शिक्षा किसी के जीवन को बनाने में निस्वार्थ भाव से अपनी सेवा देते हैं। शिक्षक हमेशा यही चाहते हैं कि उनका पढ़ाया हुआ छात्रा अपने जीवन में बड़ी कामयाबी हासिल करें। जब छात्र अपने जीवन में कुछ बन जाता है तो सबसे ज्यादा खुशी टीचर को होती है।

जहां कुछ टीचर्स के लिए पढ़ाना जरूरत होती है, वहीं कुछ लोगों के लिए पैशन। ऐसे टीचर्स का सिर्फ एक ही मकसद होता है ज्यादा से ज्यादा छात्रों को शिक्षित करना, अपना ज्ञान उन तक पहुंचाना और उनके भविष्य को संवारना। इन टीचर के लिए रिटायरमेंट नामक सरकारी टर्म भी उनके लिए कोई भी मायने नहीं रखती है और ना ही उम्र उनके लिए सीमाएं बना सकता है।

आज हम आपको एक ऐसे ही गुरु प्रोफ़ेसर चिलुकुरी संतम्मा के बारे में बताने जा रहे हैं, जो फिजिक्स पढ़ाती हैं। यह विषय उनका पैशन है और पढ़ाना उनकी जिंदगी का मकसद है। 93 साल की प्रोफ़ेसर संतम्मा के घुटने की सर्जरी हुई है जिसके चलते वह बैसाखियों की मदद से चलती हैं। परंतु इसके बावजूद भी मुस्कुराते हुए क्लास में पहुंचती हैं।

5 महीने की उम्र में पिता चल बसे

प्रोफ़ेसर संतम्मा का जन्म 8 मार्च 1929 को मछलीपट्टनम में हुआ था। जब उनकी उम्र महज 5 महीने की थी, तो उनके पिता इस दुनिया को छोड़ कर चले गए थे, जिसके बाद मामा ने ही उन्हें पाल पोस कर बड़ा किया। जब वह 1945 में एवीएन कॉलेज विशाखापट्टनम में इंटरमीडिएट की छात्रा थीं, तब महाराज विक्रम देव वर्मा से उन्हें फिजिक्स के लिए गोल्ड मेडल प्राप्त हुआ था।

प्रोफ़ेसर संतम्मा ने आंध्र प्रदेश यूनिवर्सिटी से फिजिक्स में ही B.Sc और फिर माइक्रोवेब स्पेक्ट्रोस्कोपी से D.Sc (Phd के समान) किया। साल 1956 में बतौर फिजिक्स लेक्चरर आंध्र यूनिवर्सिटी के कॉलेज ऑफ साइंस में वह पढ़ाने लगीं।

कई सरकारी डिपार्टमेंट में कर चुकी हैं काम

उन्होंने कई केंद्र सरकारी डिपार्टमेंट जैसे- काउंसिल ऑफ साइंटीफिक ऐंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआईआर), यूनिवर्सिटी ग्रान्ट्स कमिशन (यूजीसी) और डिपार्टमेंट ऑफ साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी (डीसीएटी) में काम किया है। 60 साल की आयु में 1989 में वह रिटायर हो गई थीं परंतु रिटायरमेंट नामक सरकारी टर्म उनके और फिजिक्स के पैशन के बीच ना आ सकी।

बैसाखियों के सहारे मुस्कुराते हुए पहुंचती हैं क्लास

93 साल की प्रोफेसर संतम्मा आंध्र प्रदेश के विज़यानगरम स्थित सेन्टुरियन यूनिवर्सिटी में पिछले 6 दशकों से फ़िज़िक्स पढ़ा रही हैं और युवाओं को प्रेरित कर रही हैं। घुटने की सर्जरी होने के कारण से वह ठीक से चल नहीं पातीं, जिसके चलते वह बैसाखियों की मदद से चलती हैं। भले ही उनको इतनी तकलीफ है लेकिन वह मुस्कुराते हुए क्लास पहुंचती हैं।

छात्र भी प्रोफ़ेसर संतम्मा की मेहनत, डेडीकेशन से प्रभावित हैं। वह किसी भी हालत में प्रोफेसर की क्लास मिस नहीं करना चाहते हैं बल्कि वह खुद क्लास में उनका इंतजार करते रहते हैं। कभी भी प्रोफेसर अपनी क्लास में देर नहीं पहुंचती हैं। उनको हर विषय में बहुत अच्छा ज्ञान है जिसकी वजह से छात्र उनको चलता फिरता इन्साइक्लोपीडिया कहते हैं। प्रोफेसर अनुशासन, डेडीकेशन, कमिटमेंट की मूरत हैं।

अपना घर भी प्रोफेसर कर चुकी हैं दान

आपको बता दें कि फिजिक्स के अलावा प्रोफ़ेसर संतम्मा को वेद, पुराण, उपनिषदों में भी बहुत दिलचस्पी है। उन्होंने गीता के श्लोकों का अंग्रेजी में अनुवाद कर, Bhagavad Gita – The Divine Directive नामक पुस्तक भी प्रकाशित की है।

प्रोफेसर सिर्फ विद्या का दान ही नहीं करती हैं बल्कि उन्होंने विवेकानंद मेडिकल ट्रस्ट को अपना घर भी दान दिया है और किराए के घर में रहती हैं। उनके दिन की शुरुआत सुबह 4:00 बजे से हो जाती है। वह एक दिन में 6 क्लासेस ले सकती हैं, ऐसा प्रोफ़ेसर संतम्मा का कहना है।

उम्र सिर्फ़ एक संख्या है

प्रोफ़ेसर संतम्मा ने “द न्यू इंडियन एक्सप्रेस” से बातचीत के दौरान यह बताया कि उन्हें उम्र से कोई फर्क नहीं पड़ता। प्रोफ़ेसर संतम्मा के शब्दों में “मेरी मां वन्जक्शम्मा 104 की उम्र तक जीवित थीं। स्वास्थय तो हमारे दिमाग पर निर्भर करता है और दौलत दिलों पर। हमें हमेशा दिल और दिमाग को स्वस्थ रखने की कोशिश करनी चाहिए। मैं खुद को अलबर्ट आइंस्टीन से कंपेयर नहीं कर सकती लेकिन मैं मानती हूं कि मैं यहां किसी उद्देश्य से हूं- आखिरी दम तक पढ़ाने के उद्देश्य से।”