पति की मौत के बाद कुली बनकर 3 बच्चों की परवरिश कर रहीं हैं संध्या, पूरी कहानी जानकर हो जाएंगे भावुक

ऐसा कहा जाता है कि इंसान के जीवन में कब बुरा वक्त आ जाए उसके बारे में बता पाना बहुत ही मुश्किल है। हर इंसान को अपने जीवन में सभी उतार-चढ़ाव से गुजरना पड़ता है। किसी व्यक्ति के जीवन में कम परेशानियां आती हैं तो किसी व्यक्ति का जीवन हमेशा परेशानियों में ही गुजरता है। अगर हम महिलाओं की बात करें तो महिलाएं अगर कुछ करने की ठान लें तो क्या नहीं कर सकतीं। महिलाएं बहुत हिम्मत वाली मानी जाती हैं। विषम परिस्थितियों में यह खुद को संभाल कर अपने पूरे परिवार को ठीक प्रकार से चलाती हैं। आज हम आपको एक ऐसी महिला के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं जिसके बारे में जानकर आप भी उसकी हिम्मत को सलाम करेंगे।

दरअसल, आज हम आपको 30 साल की संध्या मरावी की कहानी बताने जा रहे हैं, जो मध्य प्रदेश के कटनी रेलवे स्टेशन पर कुली का काम करती हैं। इनको कुली का काम करके देख हर कोई आश्चर्यचकित हो जाता है। अक्सर आप लोगों ने रेलवे स्टेशनों पर सामान ढोने के लिए सिर्फ पुरुष कुली को ही देखा होगा, यहां तक कि बड़े रेलवे स्टेशनों पर भी महिला कुली आपको नजर नहीं आएंगीं, लेकिन संध्या को अपनी आजीविका चलाने के लिए मजबूरी में कुली का काम करना पड़ रहा है।

बीमारी की वजह से पति का हो गया था निधन

आपको बता दें कि संध्या मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले के कुंडल गांव की रहने वाली हैं। यह अपने बच्चों की देखभाल के साथ-साथ चूल्हा-चक्की का काम भी संभाल रही हैं। शायद उनकी किस्मत में कुछ और ही लिखा था। इनका जीवन हंसी-खुशी व्यतीत हो रहा था परंतु अचानक से ही वक्त ने करवट बदल ली और पति भोलाराम बीमारी के चलते इस दुनिया को छोड़ कर चले गए। पति के देहांत के बाद जैसे मानो संध्या के ऊपर पहाड़ टूट गया हो। घर का गुजारा उनके पति ही चलाते थे। पति के जाने के बाद घर चलाने में बहुत परेशानी आने लगी। संध्या के ऊपर 3 बच्चों और सास की जिम्मेदारी आ गई।

संध्या ने कठिन समय में अपनी हिम्मत नहीं हारी और उन्होंने सोचा कि वह खुद कुछ काम करके अपने तीन बच्चों का पेट पलेंगीं। आपको बता दें कि संध्या के दो छोटे बेटे साहिल व हर्षित और एक बेटी पायल है। पति के गुजर जाने के बाद संध्या ने अपने घर को संभाला। संध्या का ऐसा बताना है कि पैसे ना होने की वजह से खाने के भी लाले पड़ रहे थे। उनसे बच्चों को इस हाल में देखा नहीं जा रहा था, जिसकी वजह से मजबूरी में उन्होंने कुली बनने का फैसला किया।

45 कुलियों में अकेली महिला कुली है संध्या

संध्या को पति के जाने के बाद बच्चों की परवरिश और दो वक्त की रोटी की चिंता सताने लगी परंतु उन्होंने साहस के साथ बड़ी ही हिम्मत के साथ काम लिया। संध्या ने अपने बच्चों के लिए खुद को संभाला और यह ठान लिया कि चाहे कुछ भी हो, वह अपने बच्चों की बेहतर परवरिश करने में किसी भी प्रकार की कमी नहीं होने देंगीं। आपको बता दें कि जनवरी 2017 से मर्दों की तरह सिर और कांधे पर संध्या वजन ढो रही हैं। संध्या कटनी स्टेशन में 45 कुलियों में अकेली महिला कुली है। यह अपने सिर पर बोझ ढोकर अपनी जिंदगी का गुजारा कर रही हैं। संध्या के ऊपर बूढ़ी सास की सेवा और बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी है।

अपने तीनों बच्चों को अफसर बनाना चाहती हैं संध्या

आपको बता दें कि संध्या रोजाना 45 किलोमीटर की दूरी तय करके पहले जबलपुर फिर यहां से कटनी पहुंचती हैं। दिन भर काम पूरा करने के बाद शाम को घर वापस आती हैं और चूल्हा-चौकी के काम में जुट जाती हैं। कुली की पहचान के लिए लाइसेंस के समय एक बिल्ला नंबर दिया जाता है और संध्या का बिल्ला नंबर 36 है। संध्या का ऐसा बताना है कि वह अपने तीनों बच्चों को अफसर बनाना चाहती हैं। तीनों बच्चों के भरण-पोषण और बेहतर शिक्षा के लिए संध्या दुनिया का बोझ ढोकर बच्चों को पढ़ा रही हैं।