गोबर के उपले बनाने वाली लड़की बनीं 700 करोड़ की मालकिन, पढ़ें कैसे पाई सफलता

ऐसा कहा जाता है कि जिसके हौसले बुलंद हों, वह अपने जीवन में एक ना एक दिन कामयाबी जरूर प्राप्त करता है। सफलता पाने के सपने तो हर कोई देखता है परंतु हर किसी को सफलता मिल सके, यह संभव नहीं हो सकता। अगर आप अपने जीवन में कामयाबी पाना चाहते हैं तो इसके लिए कड़ी मेहनत और संघर्ष करना पड़ता है।

कभी-कभी तो सफलता बहुत मुश्किल से मिलती है लेकिन कभी भी अपने लक्ष्य से पीछे नहीं हटना चाहिए। अगर इंसान मन में कुछ कर दिखाने की ठान ले और वह लगातार कोशिश करें तो एक ना एक दिन सफलता उसके कदम जरूर चूमती है।

आज हम आपको एक गरीब लड़की की सच्ची कहानी बताने वाले हैं जिसने अपने जीवन में बहुत सी कठिनाइयों को झेला है परंतु हर कठिनाई का उसने डटकर सामना किया और आज वह 700 करोड़ की मालकिन बन चुकी है। जी हां, आज हम आपको कल्पना सरोज की कहानी बताने वाले हैं। कल्पना करोड़ों का टर्नओवर देने वाली कंपनी “कमानी ट्यूब्स” की चेयरमैन और पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित हैं।

कल्पना सरोज एक नहीं बल्कि कमानी स्टील्स, केएस क्रिएशंस, कल्पना बिल्डर एंड डेवलपर्स, कल्पना एसोसिएट्स जैसी दर्जनों कंपनी की मालिक बन चुकी हैं और इन कंपनियों का रोज का टर्नओवर करोड़ों रुपए का है। समाजसेवा और उद्यमिता के लिए कल्पना सरोज को पद्मश्री और राजीव गांधी रत्न के अलावा देश-विदेश में दर्जनों पुरस्कार मिल चुके हैं।

कल्पना सरोज महाराष्ट्र के अकोला जिले के निवासी हैं। कल्पना एक बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखती हैं। कल्पना की आर्थिक स्थिति बिल्कुल भी ठीक नहीं थी। घर की हालत बहुत ज्यादा खराब थी, जिसके चलते कल्पना गोबर के उपले बनाकर बेचा करती थीं। कल्पना के परिवार में पिता ही एक मात्र कमाने वाले थे। कल्पना के पिता हवलदार की नौकरी करते थे, जिसके लिए उन्हें सिर्फ ₹300 ही मिला करते थे, जिससे घर का पूरा खर्च चलता था

कल्पना सरोज ने अपने जीवन में बहुत कठिन परिस्थितियों का सामना किया है परंतु वह हर कठिनाइयों को हिम्मत से पार करते रहीं। उन्होंने अपने जीवन में खूब मेहनत की और आज वह करोड़ों की कंपनी की मालिक बन चुकी हैं। वह कई कंपनियों की मालकिन हैं।

कल्पना का बचपन बहुत परेशानी भरा रहा है। जहां समाज लड़कियों को बोझ समझता था। इसी वजह से महज 12 साल की उम्र में ही कल्पना के शादी उससे 10 साल बड़े आदमी से कर दी गई। शादी के बाद कल्पना की हालत बहुत ज्यादा खराब हो गई। ससुराल में घरेलू कामकाज में जरा सी भी चूक पर कल्पना रोज पिटती। ससुराल में खाने के लिए खाना नहीं देते थे। उनके साथ जानवरों की तरह सलूक किया जाता था।

कल्पना का ऐसा बताना है कि एक बार जब उनके पिता ससुराल आए तो उन्होंने यह सब देखा और वह कल्पना को अपने साथ घर लेकर चले आए। कल्पना ने अपने जीवन में बहुत दुख झेला है। उन्होंने एक बार तो आत्महत्या करने का भी प्रयास किया परंतु भगवान को कुछ और ही मंजूर था। कल्पना बताते हैं कि जान देने की कोशिश उसकी जिंदगी में एक बड़ा मोड़ लेकर आई। मैंने सोचा कि मैं क्यों जान दे रही हूं? किसके लि?ए क्यों ना मैं अपने लिए जिऊँ, कुछ बड़ा पाने की सोचूं। कम से कम कोशिश तो कर ही सकती हूँ।

जब कल्पना की उम्र 16 वर्ष की थी तब वह अपने चाचा के पास मुंबई आ गई थीं और सिलाई की नौकरी करनी शुरू कर दी। लेकिन वह इस काम को अच्छे से नहीं कर पा रही थीं। समय के साथ उन्होंने वापस मशीन पर अपना हाथ बैठाया और 16 घंटे काम करने लगीं। कल्पना अपने जीवन में कभी भी मेहनत करने से पीछे नहीं हटीं। वह 16 घंटे काम करके पैसे जोड़ती थीं और घरवालों की सहायता करती थीं।

बाद में कल्पना के पास एक शख्स आया, जो अपना प्लॉट 2.5 लाख रुपए में बेच रहा था। उसने कल्पना से कहा कि आप मुझे अभी एक लाख दे दो, बाकी बाद में दे देना। कल्पना की किस्मत में उसका साथ दिया और रातों-रात वह प्लॉट 50 लाख रुपए की कीमत का हो गया।

कल्पना के संघर्ष और मेहनत को जानने वाले उसके मुरीद हो गए और मुंबई में उन्हें पहचान मिलने लगी। इसी जान पहचान के बल पर कल्पना को पता चला कि 17 साल बंद पड़ी “कमानी ट्यूब्स” को सुप्रीम कोर्ट ने उसके कामगारों से शुरू करने को कहा है। कंपनी के कामगार कल्पना से मिले और कंपनी को फिर से शुरू करने में सहायता की अपील की। यह कंपनी कई विवादों के चलते 1988 में बंद पड़ी थी। कल्पना ने वर्करों के साथ मिलकर मेहनत और हौसले के बल पर 17 सालों से बंद पड़ी कंपनी में जान फूंक दी।

जब कल्पना ने कंपनी संभाली तो कंपनी के वर्करों को कई साल से सैलरी नहीं मिली थी। कंपनी पर करोड़ों रुपए का सरकारी कर्जा था। कंपनी की जमीन पर किराएदार कब्जा कर के बैठे हुए थे। मशीनों के कलपुर्जे या तो जंग खा चुके थे या चोरी हो चुके थे। मालिकाना और लीगल विवाद भी था। परंतु उसके बावजूद भी कल्पना ने हिम्मत नहीं हारी और दिन रात मेहनत करके उन्होंने सभी विवाद को सुलझा दिया।

कल्पना की मेहनत का नतीजा है कि आज “कमानी ट्यूब्स” करोड़ों का टर्नओवर दे रही है। कल्पना का बताना है कि उन्हें ट्यूब बनाने के बारे में रत्तीभर भी जानकारी नहीं थी और मैनेजमेंट उन्हें आता नहीं लेकिन वर्करों के सहयोग और सीखने की झलक ने आज एक दिवालिया हो चुकी कंपनी को सफल बना दिया। आपको बता दें कि आज उनकी कंपनी के नाम पर मुंबई जैसे बड़े शहर में राजाभाई कमानी और कुर्ला कमानी दो राज मार्ग हैं।