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गरीब औरत के घर अचानक पहुंचे DM साहब, खाया खाना, जाते-जाते किया ये काम, जानकर आप भी करेंगे तारीफ

ऐसा कहा जाता है कि भगवान अगर इंसान को धरती पर भेजता है तो उसके रहने और खाने-पीने का सब इंतजाम कर देता है और यह बात कहीं ना कहीं सही साबित जरूर होती है। भले ही इंसान गरीब हो परंतु उसको दो वक्त की रोटी कहीं ना कहीं से मिल ही जाती है। वैसे देखा जाए तो मनुष्य के जीवन में बहुत से उतार-चढ़ाव आते हैं। कभी व्यक्ति अपना जीवन हंसी-खुशी व्यतीत करता है तो कभी बहुत सी परेशानियां उत्पन्न होने लगती हैं। मुश्किल समय में हर इंसान भगवान को याद करता है और भगवान उस इंसान की मदद के लिए किसी ना किसी को जरूर भेजता है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान के घर देर है परंतु अंधेर नहीं है।

आज हम आपको एक ऐसे मामले के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं, जिसके बारे में जानकर आप भी इस बात को मानेंगे कि भगवान के घर में देर है अंधेर नहीं। दरअसल, 80 साल की बूढ़ी माता एक छोटे से घर में बिल्कुल अकेली रहती थी। यह गरीब माता काफी दिनों से भूखी और बीमार अवस्था में अपने छोटे से घर में ही पड़ी हुई थी। उनका खाना-पीना और ठीक से उठना-बैठना भी दूभर हो गया था। 80 साल की यह बूढ़ी माता हर पल भगवान से यही फरियाद करती थी कि हे भगवान मुझे उठा ले। गरीबी के चलते इस बूढ़ी माता को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ा परंतु एक दिन भगवान ने इनकी सुन ली और भगवान के रूप में इनके घर DM साहब अचानक ही पहुंच गए।

गरीब औरत के घर अचानक पहुंचे डीएम साहब

हम आपको जिस खबर के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं यह खबर तमिलनाडु के करूर जिले की है। जहां पर जिले के डीएम टी अंबाजगेन को जब इस बात का पता चला कि एक गरीब और बूढ़ी औरत अपने छोटे से घर में अकेली रहती है और इसकी हालत खराब है तो डीएम साहब ने अपनी दरियादिली दिखाई। डीएम साहब ने अपनी पत्नी से खाना बनवाया और टिफन में लेकर निकल पड़े। डीएम साहब बूढ़ी माता के चिन्नमालनिकिकेन पट्टी स्थित झोपड़ी में पहुंच गए।

उनकी झोपड़ी के सामने मेहमान के तौर पर खड़े थे डीएम साहब

आपको बता दें कि इस गरीब बूढ़ी माता से आसपास के पड़ोसी भी आंखें नहीं मिलाते थे। कुछ ही समय में इस गरीब माता की झोपड़ी के सामने जिले के डीएम साहब मेहमान के तौर पर खड़े नजर आए। वह बूढ़ी महिला कुछ भी समझ नहीं पा रही थी कि आखिर बात क्या है? डीएम साहब माताजी से कहते हैं- माता जी, आपके लिए घर से खाना लाया हूं, चलिए खाते हैं। माताजी ने डीएम साहब के साथ केले के पत्ते पर खाना खाया था।

डीएम साहब ने माता जी के साथ केले के पत्ते पर खाना खाया

बूढ़ी माता के घर में ठीक से बर्तन भी नहीं थे, जिस पर माताजी कहती हैं कि “साहब हम तो केले के पत्ते पर ही खाते हैं।” इस बात पर डीएम साहब ने माता जी से बोला कि “अति उत्तम” आज मैं भी केले के पत्ते पर खाऊंगा। माताजी और डीएम साहब ने केले के पत्ते पर खाना खाया।

जाते-जाते डीएम साहब ने किया यह काम

डीएम साहब जाते-जाते उस बूढ़ी माता को वृद्धावस्था की पेंशन के कागजात सौपतें हैं। इसके साथ ही डीएम साहब कहते हैं कि आपको बैंक तक आने की आवश्यकता नहीं होगी। घर पर ही आपको टेंशन मिल जाएगी। इसके बाद डीएम साहब अपनी गाड़ी में बैठ कर चले जाते हैं। उस बूढ़ी माता की आंखों में आंसू आ जाते हैं और वह यह सब देखती रह जातीं हैं।

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