तीसरी पास बर्तन साफ़ करने वाला ये शख्स पा चुका है पद्दमश्री अवार्ड, अब तक लाखों विधार्थी कर चुके हैं इनपर पीएचडी

कविता लिखने की कला हर किसी में नहीं होती. यह काम वही कर सकता जो काफी पढ़ा लिखा और बुद्धिमान हो. आज हम आपको एक ऐसे शख्स की कहानी सुनाने जा रहे हैं. जिन्होंने 3 साल की उम्र में पढ़ाई छोड़ने के बाद भी ऐसी कविताएं लिखी जिनके लिए उन्हें पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया गया. खबरों की माने तो हलधर नाग ने तीसरी कक्षा में ही पढ़ाई को छोड़ दिया था. सब लोग यह सोच रहे हैं कि हलधर नाग आखिरकार कौन है? तो आप सभी लोगों को बता दें कि यह व्यक्ति कोशली भाषा के एक जाने-माने कवि है. यह पश्चिम ओडिशा में बोले जाने वाली भाषा है इनकी उम्र 66 साल है.

गौरतलब है कि केवल दूसरी कक्षा तक पढ़ाई करने वाले यह कवि जब कवि सम्मेलन में जाकर अपनी कविताएं सुनाते हैं तो दर्शक इनकी कविताओं को काफी ज्यादा ध्यान लगाकर सुनते हैं. इतना ही नहीं इन्हें इनकी जबरदस्त कविताओं के लिए पश्चिम बंगाल,आंध्रप्रदेश और छत्तीसगढ़ के विश्वविद्यालयों में कविताए सुनाने के लिए कई बार बुलाया गया है. नाग ने अपनी जिंदगी में लगभग 20 काव्य और कई सारी कविताओं की रचना की है. उनकी कविताओं का पहला संग्रह ग्रंथाबली 1 कटक के फ्रेंड्स पब्लिशर द्वारा प्रकाशित किया गया है.

वही आप सभी लोगों को बता दें कि अब ग्रंथाबाली 2 उड़ीसा की संभलकर यूनिवर्सिटी द्वारा लेकर आई जा रही है. इतना ही नहीं यह यूनिवर्सिटी के सिलेबस में भी शामिल की जाएगी. नाग अपनी बेहतरीन कविताओं के लिए उड़ीसा की साहित्य अकादमी अकादमी द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है. इतने बड़े कवि होने के बाद भी नाग ने आज तक पैरों में चप्पल नहीं पहना. इसके साथ ही वह केवल बनियान और धोती पहनते हैं. उनका कहना है कि इन कपड़ों में वह ज्यादा अच्छा महसूस करते हैं.

जानकारी के लिए आप सभी लोगों को बता दें कि हलधर का जन्म 1950 में उड़ीसा के एक छोटे से गांव के गरीब परिवार में हुआ था. उनकी उम्र महज 10 वर्ष थी तभी उनके पिता का निधन हो गया. पिता के चले जाने के बाद हलधर का असली संघर्ष शुरू हो गया. तब उन्होंने घर की परिस्थितियां ठीक ना होने के कारण स्कूल छोड़ मिठाई की एक दुकान में बर्तन धोने का काम करना पड़ा. जिसके 2 साल बाद गांव के सरपंच ने हलधर को गांव के स्कूल में खाना बनाने के लिए नियुक्त कर दिया. इस महान कवि ने 16 वर्ष तक यहीं पर काम किया और जब उनको पता चला कि गांव में बहुत सारे स्कूल खुल गए हैं. तो उन्होंने गांव में स्टेशनरी और मिठाई की छोटी सी दुकान खोलने के लिए बैंक को कॉल किया और ₹1000 का लोन मांगा.

गौरतलब है कि साल 1990 में महान कवि ने अपनी पहली कविता धोधो बारगाजी रचना की इस कविता को एक था या पत्रिका द्वारा छापा गया. आज से इस गीतकार की कविताओं को पत्रिकाओं में स्थान मिलने लगा. जिसके बाद ही ने आस-पास के गांव में भी कविता सुनाने के लिए बुलाए जाने लगा और इनकी कविता इतनी लोकप्रिय हो गई कि इनको लोक कवि रत्नम के नाम से जाना जाने लगा. जानकारी के लिए आप सभी लोगों को बता दें कि इस महान कवि और गीतकार को 2016 में राष्ट्रपति द्वारा पद्मश्री अवार्ड से भी सम्मानित किया गया है.