भूमि पूजन के दौरान आखिर लोग ज़मीन में क्यों गाड़ते हैं ‘सर्प और कलश’? ये हैं बड़ी वजह

हिंदू धर्म के लोग बेहद धार्मिक विचारों वाले होते हैं. यहां हर रस्म और रीति-रिवाज़ को निभाया जाता है जिसके पीछे कोई न कोई इतिहासिक या मिथिहासिक कारण जुड़ा होता है. बच्चे के जन्म से लेकर व्यक्ति के मरन तक यहां विशेष प्रकार के कार्य किए जाते हैं. वहीँ बात अगर कोई नई ज़मीन खरीदने की हो तो आपने एक बात नोटिस की होगी कि लोग ज़मीन की नींव रखने के समय उसमे सर्प और काश गाड़ देते हैं. अब आप सोच रहे होंगे आखिर इसके पीछे का कारण क्या है? तो आईये हम आपको बताते हैं इस विशेष रस्म के पीछे का असली राज़…

 

श्रीमद् भागवत गीता के पांचवे स्कन्द में लिखा गया है कि, “धरती के नीचे पाताल लोक है जिसका स्वामी शेषनाग है. इसके दस हजार योजन नीचे जाया जाए वहां पर अतल है जबकि उसके दस हजार योजन नीचे वितल, फिर सतल और इसी कर्म में कईं लोक मौजूद हैं. इन सब लोकों को मिला कर कुल सात लोक होते हैं. सभी लोकों में पुरियां प्रकाशमान होती है. इसके इलावा यहाँ सूर्य जैसे कोई गृह नहीं हैं और ना ही यहाँ दिन- रात का कोई चक्कर होता है. यहाँ अँधेरा दूर करने के लिए नागों की मणियाँ मौजूद हैं.”

पुरातन धर्म ग्रंथों के अनुसार शेषनाग के माथे पर पृथवी टिकी हुई है. यानि कि स्वयं विश्वरूप अनंत नामक शेषनाग को परमदेव ने बनाया है जो सभी पर्वतों के साथ धरती तथा भूतमात्र को धारण किए हुए है. कहा जाता है कि शेषनाग सभी नागों के राजा हैं जोकि भक्तों समेत भगवान के साथ कईं बार अवतार लेकर पृथवी पर पैदा हुए हैं और भगवान की लीला में ही सम्मीलित भी रहते हैं. गीता के 10वें अध्याय के 29वें श्लोक में कृष्ण भगवान ने बताया है- “अनन्तश्चास्मि नागानाम्’ अर्थात् मैं नागों में शेषनाग हूं.”

ऐसे में भूमि पूजन का कार्य इस मनोविज्ञान पर आधारित है कि शेषनाग पूजन के दौरान जैसे पूरी पृथवी को धारण किए हुए हैं ठीक वैसे ही नए भवन की नींव की मजबूती का भी ध्यान रखेंगे. श्रीसागर के अनुसार शेषनाग को बुलाने के लिए लोग भूमि पूजन के समय ज़मीन में कलश, दही, दूश और घी आदि डालते हैं और मंत्रों का आह्वान करके शेषनाग को बुलाते हैं ताकि वह साक्षात् वहां अपनी उपस्तिथि रखें और भवन के भार को समेट लें. बता दें कि लक्ष्मण और बलराम को शेषावतार माना जाता है. इसके इलावा शिव भगवान के आभुष्ण भी नाग ही हैं. ऐसे में सर्प और कलश गाड़ने की प्रथा को सदियों से निभाया जाता आया है.