श्राद्ध पक्ष में क्यों खिलाया जाता है ‘कौवे’ को भोजन, यहाँ जानिए जवाब

हिन्दू धर्म में रीति-रिवाजों और परंपराओं को परिपूर्ण तरीके से निभाया जाता है. इन्ही में से एक परंपरा सालों से चलती आ रही है और वह है श्राद्ध. इस साल 2 सितंबर से श्राद्ध पक्ष शुरू हो चुका है. मान्यता है कि श्राद्धों के दौरान हमारे पूर्वज पितरलोक से धरती पर हमसे किसी न किसी रूप में मिलने आते हैं, ऐसे में उन्हें परिवार द्वारा भोजन ग्रहण करवाने की रीति चलती आई है. यह श्राद्ध हर साल मनाए जाते हैं. वहीँ इस साल यह अगले 15 दिनों तक जारी रहेंगे. बहुत से लोग श्राद्ध में काले कौवे को भोजन खिलते हैं. क्या आप इसके पीछे की वजह से वाकिफ हैं? अगर नहीं, तो चलिए आज हम आपको बताते हैं इसका कारण.

कौवा होता है बेहद शुभ

हिन्दू धर्म में शुभ अशुभ का ख़ास ख्याल रखा जाता है. लेकिन बता दें कि श्राद्ध में कौवे को भोजन ग्रहण करवाना बेहद शुभ कार्य समझा जाता है. मान्यता है कि यदि कोई कौवा आपका दिया भोजन खा लेता है तो आपके पितरों की आप पर सदैव कृपा बनी रहती है. परन्तु, वहीँ अगर कौवे आपके भोजन से दूरी बनाए रखते हैं तो माना जाता है कि आपके पितृ आपसे नाराज़ हैं या फिर वह आपसे विमुख हैं. ऐसे में परिवार को श्राद्ध का फल नहीं मिल पाता.

भगवान राम ने दिया था वरदान

श्राद्ध और कौवे से जुडी एक कहानी भी काफी प्रचलित है. यह कहानी त्रेतायुग की है. उस समय भगवान राम सीता और लक्ष्मण के साथ अयोध्या वनवास पर थे. ऐसे में इंद्र पुत्र जयंत ने कौवे का रूप धारण कर लिया था और सीता माता के पैर पर चोंच मार दी थी. भगवान राम ने तिनके से बाण चला कर उस कौवे की एक आँख फोड़ दी थी. जब जयंत ने उनसे क्षमा मांगी तो श्रीराम ने वरदान देते हुए कहा कि तुम जो भोजन खाओगे, वह तुम्हारे पितरो तक पहुंचेगा. तभी से लेकर अब तक कौवे को भोजन करवाने की परंपरा निभाई जा रही है.

कौवा कभी स्वभाविक नहीं मरता

कौवे को लेकर और भी कईं प्रकार की धारणाएं प्रचलित है. यदि घर की छत पर कौवा बोलता है तो इसे घर में अतिथि आने का सूचक माना जाता है. वह पितरों नका आश्रय भी माना जाता है. पुराणों में लिखित अनुसार कहा जाता है कि एक बार कौवे ने अमृत चख लिया था इसके बाद से इस पक्षी की कभी स्वभाविक मृत्यु नहीं होती. यह ना तो किसी बीमारी से मरते हैं और ना ही बूढ़े हो कर. इनका अंत आकस्मिक रूप से आता है जो कि अतृप्ता का प्रतीक है. ऐसे में यदि पितृ की तृप्ति के लिए कौवे को भोजन करवाया जाए, तो इससे पितरों को भी तृप्त किया जा सकता है.