87 वर्षीय डॉक्टर रोजाना साइकिल चलाकर घर-घर जाकर गरीबों का करते हैं इलाज, कोरोना काल बने मसीहा

कोरोना वायरस महामारी को लेकर लोगों के मन में काफी डर बैठ चुका है। देश के लिए कोरोना वायरस एक गंभीर समस्या बन चुकी है। इसकी रोकथाम के लिए लगातार सरकार द्वारा कोई ना कोई नए कदम उठाए जा रहे हैं परंतु इसके बावजूद भी इस बीमारी ने पूरे देश भर में अपना शिकंजा कस लिया है। हालांकि अब धीरे-धीरे हालात में सुधार आता जा रहा है परंतु लोगों के मन में अभी भी डर बना हुआ है। लोग अपने घरों में ही रहते हैं, जब कोई जरूरी काम होता है तभी घर से बाहर निकलते हैं। कोरोना महामारी के चलते डॉक्टर्स भी मरीजों का इलाज करने में हिचकिचा रहें हैं, इसी बीच महाराष्ट्र के एक बुजुर्ग डॉक्टर गरीबों की सहायता कर रहे हैं। जी हां, 87 साल के यह बुजुर्ग डॉक्टर लगातार कोरोना काल में लोगों का इलाज कर रहे हैं।

घर-घर जाकर गरीबों का कर रहे हैं इलाज

अगर कोई व्यक्ति निस्वार्थ भाव से लोगों की सहायता कर रहा है तो यह उस व्यक्ति की नेकी को दर्शाता है। अपना पूरा जीवन दूसरों की सेवा में लगा देना इतना सरल नहीं होता है परंतु रामचंद्र दांडेकर कोरोना काल में लगातार बिना किसी डर के गरीब लोगों का इलाज कर रहे हैं। महाराष्ट्र के सुशी, चंद्रपुर निवासी रामचंद्र दांडेकर पिछले 60 वर्षों से राज्य के दूरदराज हिस्सों में गरीब मरीजों की सहायता करने में जुटे हुए हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इनकी उम्र 87 साल की है परंतु बिना किसी डर के लगातार यह साइकिल से रोजाना घर-घर जाकर यह नेक काम कर रहे हैं। आपको बता दें कि रामचंद्र पेशे से होम्योपैथ हैं। यह अपनी साइकिल से ही दूर-दराज के आदिवासी गांव में जाते हैं ताकि यह लोगों को इलाज दे पाएं।

मीडिया से बातचीत के दौरान रामचंद्र दांडेकर ने बताया कि उन्होंने होम्योपैथी में डिप्लोमा हासिल की है। इन्होंने 1 वर्ष के लिए लेक्चरर के रूप में भी कार्य किया था, इसके पश्चात एक परिचित ने उन्हें एक शहर में शिक्षण कार्य करने के बजाय ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने का आग्रह किया। वह मान गए और तब से ही गरीब आदिवासी मरीजों का निस्वार्थ भाव से यह इलाज करते चले आ रहे हैं। संकट की इस घड़ी में भी यह नहीं रुके, लगातार इनकी सेवा जारी है। 87 वर्ष की उम्र में भी यह आराम नहीं कर रहे हैं।

रामचंद्र दांडेकर का ऐसा कहना है कि आजकल के कुछ युवा डॉक्टर कोरोना वायरस महामारी के बीच लोगों का इलाज करने में काफी डरते हैं परंतु मुझे किसी भी प्रकार का डर नहीं है। वर्तमान समय में युवा डॉक्टर सिर्फ रुपए-पैसे के लिए भाग रहे हैं। यह गरीब लोगों की सेवा नहीं करना चाहते हैं। सही मायने में देखा जाए तो चिकित्सक का सबसे बड़ा धर्म मरीजों की सेवा करना है। भले ही हमारे देश ने चिकित्सा क्षेत्र में कितनी भी तरक्की कर ली हो, परंतु गांव में अभी भी बड़ी संख्या में मरीज सही समय पर इलाज ना मिल पाने के कारण अपनी जान गंवा देते हैं।

आपको बता दें कि रामचंद्र दांडेकर रोजाना अपनी साइकिल पर दवाइयों का थैला और अन्य जरूरी चिकित्सीय सामग्री लेकर हर दिन अपनी साइकिल पर डोर टू डोर सर्विस के लिए निकल पड़ते हैं। इनका कहना है कि महामारी की वजह से बहुत से लोग ऐसे हैं जो अस्पतालों में जाने का जोखिम नहीं उठा सकते, इसलिए मैंने उन्हें घर पर इलाज देने का फैसला किया।