आखिर कैसे बनता है मखाना, सच जानकर सिर पकड़ लेंगे आप
आज हम आपको ऐसी चीज के बारे में बताने जा रहे हैं जिसका प्रयोग लगभग हर किसी के घरों में किया जाता है जी हां हम बात कर रहे हैं मखाना की जो कि पोषक तत्वों से भरपूर होता है वैसे तो ये एक जलीय घास है जिसे कुरूपा अखरोट भी कहा जाता है। आपको शायद पता नहीं होगा लेकिन साधारण सा इस मखाने में कई तरह के प्रोटीन पाए जाते हैं जैसे कि आसानी से पचनेवाला प्रोटीन, कार्बोहाईड्रेट, नमी, वसा, खनिज लवण, फॉस्फोरस एवं प्रति 100 ग्राम 1.4 मिलीग्राम लौह पदार्थ मौजूद होता है। इसमें औषधीय गुण भी होता है।
वहीं ये हम भी जानते हैं कि मखाने एक हल्का-फुल्का स्नैक्स है मखाने को हम सूखे मेवा के रूप में शामिल करते हैं। मखाना खाने से चेहरे में झुर्रियां नहीं पड़ती हैं और उम्र कम दिखती हैं। अगर इसे नियमित तौर पर सही तरीके से अपनी डाइट में शामिल किया जाए तो इसके अगगिनत सेहत लाभ पाए जा सकते हैं।
मखाने देखने में तो गोल मटोल सूखे दिखाई देते है पर मखाने के फायदे कई औषधीय गुणों से भरपूर होते है। हमारे स्वास्थ्य को तंदरूस्त रखने में मदद करते है। भारत में यह नवरात्रों और अन्य अवसरों के दौरान तैयार किए जाने वाला एक लोकप्रिय ‘उपवास’पकवान है। जिसे हम सूखे मेवा के रूप में शामिल करते हैं। मखाना खाने से चेहरे में झुर्रियां नहीं पड़ती हैं और उम्र कम दिखती हैं। इसे रोजाना खाने से सेहत के अनगिनत लाभ होते हैं। इतना ही नहीं आपको ये भी बता दें कि ये अधिकांशतः ताकत वाली दवाएं मखाने से ही बनायी जाती हैं।
केवल मखाना दवा के रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता, इसलिए इसे सहयोगी आयुर्वेदिक औषधि भी कहते हैं। इसमें एन्टी-ऑक्सीडेंट होने से यह श्वसन तंत्र, मूत्र-जननतंत्र में लाभप्रद है। यह ब्लड प्रेशर एवं कमर तथा घुटनों के दर्द को नियंत्रित करता है। इसके बीजों में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेड, वसा, कैल्शियम एवं फास्फोरस के अतिरिक्त केरोटीन, लोह, निकोटिनिक अम्ल एवं विटामिन बी-1 भी पाया जाता है ।
आपको बता दें कि इसकी खेती बिहार के मिथिलांचल में ज्यादातर होती है जो कि देश की कुल मखाना खेती का लगभग 80 फीसदी भाग है। इसके पैदावार के लिए इसके बीज को जो कि सफेद और छोटे होते हैं उन्हें दिसंबर से जनवरी के बीच में ही तालाबों के अंदर बोआई किया जाता है और फिश्र अप्रैल के महीने में पौधों में फूल लगने लगते हैं। इसके बाद देखते ही देखते जून जुलाई के महीने में 24 से 48 घंटे तक पानी की सतह पर तैरते हैं और फिर नीचे जा बैठते हैं। इसके फल कांटेदार होते है। 1-2 महीने का समय कांटो को गलने में लग जाता है फिर सितंबर अक्टूबर महीने में पानी की निचली सतह से किसान उन्हें इकट्ठा करते हैं, फिर उन की प्रोसेसिंग का काम शुरू किया जाता है।