पुणे के ऐसे डॉक्टर जो लड़की पैदा होने पर नहीं लेते फीस, बेटी के जन्म पर होता है जोर-शोर से स्वागत

बेटियों का पैदा होना किसी उपहार से कम नहीं है। मौजूदा समय में बेटियां किसी भी क्षेत्र में बेटों से पीछे नहीं हैं। कई क्षेत्रों में बेटियां, बेटों के कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही हैं और विभिन्न क्षेत्रों में अपने माता-पिता के साथ-साथ अपने देश का नाम रोशन कर रही हैं। भले ही वक्त के साथ-साथ हमारा देश भी बदल रहा है। इसके साथ ही लोगों की सोच भी बदलती जा रही है परंतु आज के समय में भी ऐसे बहुत से लोग हैं, जो बेटा और बेटी के बीच फर्क समझते हैं।

अक्सर हम सभी के सामने ऐसी कई खबरें आ जाती हैं, जिसे देखकर या जानकर मन काफी दुखी हो जाता है। आए दिन ऐसी कई खबरें सुनने को मिल जाती हैं, जिसमें बेटे की चाह में लोग बेटियों को गर्भ में ही मार देते हैं। कभी नाले तो कभी कचरे के ढेर में भ्रूण मिलते हैं। लेकिन इन सब के बीच कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो बेटियों पर जान छिड़कने हैं। इसी बीच आज हम आपको एक ऐसे डॉक्टर के बारे में बताने जा रहे हैं जो बेटी पैदा होने पर फीस नहीं लेते हैं।

लड़की पैदा होने पर फीस नहीं लेते डॉक्टर साहब

जैसा कि हम सभी लोग जानते हैं देश में बेटी बचाओ मुहिम धीरे-धीरे ही सही मगर परवाने चल रही है। वहीं पुणे के इस अस्पताल में बेटियों को बचाने की मुहिम इस कदर चलाई जा रही है जिसकी जितनी तारीफ की जाए उतनी ही कम है। इस अस्पताल में पैदा होने वाली लड़की के जन्म पर डॉक्टर फीस नहीं लेते हैं बल्कि पैदा हुई नवजात बच्ची का जोर-शोर से स्वागत होता है। दरअसल हम आपको पुणे के जिस डॉक्टर के बारे में बता रहे हैं उनका नाम डॉ गणेश राख हैं, जो महाराष्ट्र के हड़पसर इलाके स्थित इस अस्पताल के मालिक हैं।

आपको बता दें कि डॉ गणेश राख प्रसूति-सह-मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल चलाते हैं। उनका यह अस्पताल हड़पसर इलाके में है। इसके जरिए वह कन्या भ्रूण हत्या और भ्रूण हत्या को लेकर लोगों को जागरूक करने का काम करते हैं। डॉ गणेश राख के अनुसार, पिछले 11 साल में उन्होंने 2400 की डिलीवरी बिना किसी फीस के करवाई है। इनके बदले उन्होंने गर्भवती महिला के पति, परिवार या रिश्तेदार से एक भी पैसा नहीं लिया।

ऐसे मिली प्रेरणा

डॉ गणेश राख का कहना है कि साल 2012 से पहले अस्पताल के शुरुआती दिनों में हमें बहुत अलग-अलग अनुभव मिले। कई बार तो ऐसा होता था कि लड़की पैदा होने के बाद लोग शर्म से उसे देखने भी नहीं आते थे। ऐसे मामलों ने उन्हें झकझोर कर रख दिया। इस घटना ने उन्हें कन्या शिशु को बचाने और लैंगिक समानता के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए कुछ करने के लिए प्रेरित किया।

डॉ गणेश राख का कहना है कि लड़का पैदा होने पर कुछ परिवार खुशी-खुशी अस्पताल आते हैं और बिल चुकाते हैं लेकिन जब लड़की के रूप में शिशु पैदा होती है, तो कुछ मामलों में उदासीन रवैया देखने को मिलता है। उनका कहना है कि हमने लड़की पैदा होने पर पूरा चिकित्सा शुल्क माफ करने का फैसला किया और बाद में इस पहल को बेटी बचाओ जन आंदोलन का नाम दिया। उन्होंने बताया कि पिछले 11 साल में 2400 से ज्यादा बच्चियों के जन्म पर अस्पताल ने कोई भी फीस नहीं ली है।