आखिर क्यों जगन्नाथ मंदिर के प्रसाद को कहा जाता है “महाप्रसाद”, जानिए क्या है राज

भारत एक ऐसा देश है जहां धर्म, आध्यात्म और आस्था का काफी महत्व है, जिसकी वजह से देश के अनेक स्थानों पर ऐसे धार्मिक स्थल और मंदिर हैं, जो अपनी विशेषताओं और रहस्य के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं। वहां पर कुछ ऐसे चमत्कार देखने को मिलते हैं, जिसके चलते लोगों की आस्था और अधिक मजबूत हो जाती है। उन्हीं मंदिरों में से एक जगन्नाथ मंदिर भी इसमें से एक है। यह हिंदुओं के पवित्र चार धामों में से एक है।

उड़ीसा के पूरी में हर वर्ष आषाढ़ मास में भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा निकाली जाती है। इस बार जगन्नाथ रथ यात्रा 1 जुलाई से शुरू हो चुकी है और यह 12 जुलाई तक चलेगी। भगवान विष्णु जी के प्रमुख अवतारों में से एक भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा बहुत मशहूर है। इसमें शामिल होने के लिए देश दुनिया से लोग आते हैं।

रथ यात्रा की ही तरह पुरी का प्रसाद भी बहुत मशहूर है। इसे “महाप्रसाद” कहा जाता है। आज हम आपको इस लेख के माध्यम से जगन्नाथ रथ यात्रा के मौके पर आपको यह बताने जा रहे हैं कि जगन्नाथ मंदिर के प्रसाद को “महाप्रसाद” क्यों कहा जाता है? इसके साथ ही इसे बनाने की प्रक्रिया की खासियतें क्या-क्या हैं, इसके बारे में बताएंगे।

“महाप्रसाद” बनाने के लिए होता है गंगा-यमुना के पानी का इस्तेमाल

आपको बता दें कि जगन्नाथ मंदिर की रसोई की कई विशेषताएं इसे खास बनाती हैं। रसोई में बनने वाले प्रसाद को तैयार करने के लिए पवित्रता का खास ख्याल रखा जाता है। इतना ही नहीं बल्कि इसे बनाने के लिए जो पानी इस्तेमाल होता है वह भी ख़ास है। जी हां, भगवान के भोग को रसोई के पास बने 2 कुओं के जल से तैयार किया जाता है। इनको कुओं को गंगा-यमुना के नाम से जाना जाता है। केवल गंगा-यमुना कुओं के पानी का इस्तेमाल करके ही बहुत मात्रा में भगवान का भोग तैयार किया जाता है।

800 लोग तैयार करते हैं भगवान का भोग

जगन्नाथ मंदिर की रसोई को भारत की सबसे बड़ी रसोई भी कहा जाता है। इस विशाल रसोई में भगवान को चढ़ाने वाले महाप्रसाद को तैयार करने के लिए एक समय में 800 लोग मिलकर काम करते हैं। इसमें से करीब 500 रसोइए होते हैं और 300 लोग इनकी मदद के लिए होते हैं। यहां बहुत अधिक मात्रा में रोजाना भोग (महाप्रसाद) तैयार किया जाता है।

महाप्रसाद को पकाने में केवल मिट्टी के बर्तनों का ही किया जाता है उपयोग

जगन्नाथ मंदिर में जो महाप्रसाद पकाया जाता है, उसके लिए सिर्फ मिट्टी के बर्तनों का ही उपयोग किया जाता है। इसके लिए इन बर्तनों को एक के ऊपर एक रखा जाता है और हैरान देने वाली बात यह है कि सबसे ऊपर रखे हुए बर्तन का खाना भी सबसे पहले और नीचे रखे बर्तन का भोजन सबसे बाद में पकता है। ऐसा माना जाता है कि जगन्नाथ मंदिर की रसोई में पूरा भोग मां लक्ष्मी की देख-रेख में तैयार होता है। इस महाप्रसाद की महिमा ऐसी है कि इसे पाने के लिए दूर-दूर से लोग यहां पर आते हैं।

जानिए यहां के प्रसाद को क्यों कहा जाता है महाप्रसाद?

आमतौर पर भगवान को लगाए गए भोग में प्रसाद के रूप में भक्तों में बांटा जाता है परंतु एकमात्र भगवान जगन्नाथ को चढ़ाया गया भोग महाप्रसाद कहलाता है। इसके पीछे की ऐसी मान्यता है कि एक बार महाप्रभु वल्लभाचार्य एकादशी व्रत के दिन जगन्नाथ मंदिर गए। वहां भगवान ने सोचा की महाप्रभु वल्लभाचार्य की निष्ठा की परीक्षा ली जाए। उस दिन महाप्रभु वल्लभाचार्य का व्रत था। किसी ने उन्हें प्रसाद दिया। वल्लभाचार्य ने वो प्रसाद ले लिया। उन्होंने इसके बाद पूरे दिन और रात पूजा की और अगले दिन द्वादशी को पूजा खत्म होने के बाद प्रसाद ग्रहण किया। तभी से इस प्रसाद को महाप्रसाद का गौरव प्राप्त हुआ।