कांवड़ पर माता-पिता को बैठाकर गाजियाबाद से पैदल हरिद्वार पंहुचा बेटा, इसलिए बांध दी दोनों की आंखों पर पट्टी

इस संसार का सबसे बेहतर रिश्ता माता-पिता का होता है। माता-पिता हर समय अपने बच्चे को बेहतर बनाने के लिए खुद को झोंक देते हैं। माता-पिता भगवान की ओर से सबसे कीमती उपहार हैं। हमारे जीवन में माता-पिता का स्थान सर्वोपरि माना गया है। माता-पिता जिंदगी भर अपने बच्चों को प्यार देते हैं, उन्हें बड़ा करते हैं और उनकी हर सुविधा बन जाते हैं।

माता-पिता पूजनीय होते हैं, जो हमें भगवान से भी बढ़कर सुख सुविधाएं प्रदान करते हैं। इसलिए माता-पिता का दर्जा भगवान से पहले है लेकिन आजकल के समय में बहुत से बच्चे अपने माता-पिता को बोझ समझते हैं और वह अपने बूढ़े मां-बाप को वृद्धा आश्रम में छोड़ आते हैं।

इसी बीच गाजियाबाद का विकास गहलोत कांवड़ मेले में श्रवण कुमार बनकर अपने माता-पिता को गंगा स्नान करवाकर हरिद्वार से रवाना हो गया। विकास के कंधे पर बहंगिया (पालकी) में उसके माता-पिता को बैठा देखकर हर कोई हैरत में पड़ गया था।

सैकड़ों किलोमीटर का सफर पैदल किया तय

आपको बता दें कि कांवड़ मेला यात्रा धर्म, आस्था, श्रद्धा, विश्वास, भक्ति संग आध्यात्मिक शक्ति के मिलन का पर्व है। कावड़ मेला यात्रा को लेकर भक्तों में एक अलग ही उत्साह देखने को मिलता है। भारी संख्या में लोग कावड़ लेकर पहुंच रहे हैं। श्रावण मास में दो सप्ताह तक चलने वाली यात्रा में भक्त धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कांवड़ में गंगाजल भरकर अपने गंतव्य तक जाते हैं। इसी बीच विकास गहलोत अपने माता-पिता को कावड़ में बैठाकर पैदल ही हरिद्वार पहुंचे। अपना दर्द माता-पिता से छिपाने के लिए उन्होंने उनकी आंखों पर पट्टी बांध दी।

विकास गहलोत गर्मी के मौसम में सैकड़ों किलोमीटर का सफर पैदल तय कर भगवान शिव का जलाभिषेक करने के लिए जिस तरह पहुंचे उसकी सभी तारीफ कर रहे हैं। गाजियाबाद करीमपुर का 24 वर्षीय विकास गहलोत सावन में माता-पिता को स्नान करवाने हरिद्वार लेकर पहुंचे। गंगा स्नान के बाद कावड़ जल लेकर बहंगिया (पालकी) में माता-पिता को बैठाकर चल पड़े। विकास के कंधों पर पालकी बांस की जगह लोहे के मजबूत चादर की बनी है।

एक तरफ मां को दूसरी तरफ पिता को उन्होंने बैठाया। पिता के साथ 20 लीटर गंगाजल का कैन भी है। विकास गहलोत का कहना है कि उनके माता-पिता ने कावड़ यात्रा के इच्छा जताई थी। हालांकि उनके माता-पिता की उम्र इस बात के लिए तैयार नहीं थी कि वह पैदल जा सकें, जिसके बाद विकास ने मन बनाकर दृढ़ निश्चय किया और उन्होंने अपने माता-पिता को यात्रा करवाने का संकल्प लिया। श्रवण कुमार बनकर विकास माता-पिता को पैदल ही गाजियाबाद से अपने गंतव्य तक लेकर जाएंगे।

विकास ने अपने माता-पिता की आंखों को भगवा रंग के कपड़े से बंद कर दिया था ताकि वह बेटे के कंधे का दर्द का एहसास उनके चेहरे पर ना देख सकें। विकास का कहना है कि माता-पिता किसी तरह से भावुक न हो सकें। माता-पिता के भावुक होने पर वह यात्रा पूरी नहीं कर पाएगा। बीच-बीच में पालकी को सहारा देने के लिए उनके साथ अन्य दो साथी भी चल रहे हैं। विकास का कहना है कि उसके लिए माता-पिता ही उसके भगवान हैं।

चिलचिलाती धूप और बारिश में सैकड़ों किमी का पैदल सफर विकास गहलोत की हिम्मत और मातृ-पितृ भक्ति की हर कोई तारीफ कर रहा है। बता दें कि हरिद्वार से लेकर रुड़की और नारसन तक बाईपास हाईवे वह कांवड़ पटरी पूरी तरह से शिवमय हो गई है। सोमवार को तीनों मार्गों पर कांवड़ियों का सैलाब उमड़ने लगा। सुबह से ही पैरों में घुंघरू बांधकर कांधे पर कांवड़ रख कंठ से भोले के जयकारे लगाते हुए कावड़िए रवाना होते रहे। दोपहर के समय तेज गर्मी की वजह से तीनों मार्गों पर कांवड़ियों की भीड़ भी कम देखने को मिली।

वहीं शाम होते ही एक बार फिर से कावड़ियों का सैलाब उमड़ गया। देखते ही देखते तीनों मार्ग कावड़ियों के रंग में रंग गया। नाचते गाते हुए कांवड़िए भी अपने गंतव्यों की तरफ बढ़ते चले गए। चप्पे-चप्पे पर पुलिस भी तैनात रही ताकि शिव भक्तों को कोई परेशानी ना हो।