बेटी के लिए मां 30 साल तक पुरुष बनकर जीती रही जिंदगी, तमिलनाडु की एक मां की कहानी जानकर झुक जाएगा शीश

मां वह होती है, जो हमें जन्म देती है। हमारे जीवन के शुरुआती समय में कोई हमारे सुख-दुख में हमारा साथी होता है तो वह हमारी मां ही होती है। जब हमारे ऊपर कभी संकट की घड़ी आती है, तो उस दौरान मां हमें इस बात का एहसास नहीं होने देती कि संकट की घड़ी में हम अकेले हैं। मां से बढ़कर इस दुनिया में कोई नहीं है। ऐसा कहा जाता है कि एक मां अपनी संतान के लिए किसी भी हद तक जा सकती है।

मां अपने बच्चों को कभी भी परेशानी में नहीं देख सकती। अपने बच्चों की खुशियों के लिए मां कुछ भी करने को तैयार हो जाती है। फिल्म केजीएफ का भी डायलॉग है- “इस दुनिया में सबसे बड़ा योद्धा मां होती है।” मां की इच्छाशक्ति के आगे कोई नहीं टिक सकता और वह अकेले ही अपने बच्चों के लिए असंभव को भी संभव कर दिखाती है।

अपने बच्चों के लिए मां अपनी खुशियों का भी त्याग कर देती है और अपने बच्चों को दुनिया की सारी खुशियां देने की हमेशा कोशिश करती रहती है। मां सबसे पहले अपनी संतान के बारे में ही सोचती है। इसी बीच तमिलनाडु से एक ऐसी मां की कहानी सामने आई है जिसे जानने के बाद सभी का शीश झुक जाएगा।

बेटी की परवरिश के लिए स्त्री से पुरुष बन गई एक मां

दरअसल, आज हम आपको जिस मां की कहानी बताने जा रहे हैं वह तमिलनाडु के जिला थूथुकुड़ी के काटुनायक्कनपट्टी गांव की रहने वाली पेचियम्मल हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पेचियम्मल की शादी को अभी 15 दिन ही हुए थे लेकिन उनके पति की दिल का दौरा पड़ने की वजह से मृत्यु हो गई। उस समय के दौरान पेचियम्मल की उम्र महज 20 वर्ष की ही रही होगी।

पति की मौत होने के कारण पेचियम्मल पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। पेचियम्मल ने एक बेटी शन्मुगसुंदरी को जन्म दिया और उसे पालने के लिए कामकाज शुरू किया। लेकिन लोग उनसे सही से पेश नहीं आते थे। इसलिए उन्होंने अपनी पहचान पुरुष में बदलने की सोची। हालांकि, वह दूसरी शादी भी कर सकती थीं, लेकिन उन्हें अपनी बेटी के भविष्य की चिंता थी।

30 साल तक पेचियम्मल रहीं मुत्थु बनकर

रिपोर्ट्स के अनुसार, पेचियम्मल के दस्तावेजों में उनका नाम मुत्थु कुमार है। पेचियम्मल ने अपने बाल कटवा लिए और साड़ी छोड़ कर लूंगी और शर्ट पहनना शुरू किया। उन्होंने आसपास के गांवों में ऐसे कार्य किए जो आमतौर पर औरतें नहीं करती थीं। She Sight के लेख के मुताबिक, पेचियम्मल ने चाय और पराठा की दुकान पर भी कार्य किया। लोग उन्हें मुत्थु मास्टर के नाम से बुलाने लगे। पेचियम्मल का पुरुष बनने का फैसला काफी संघर्ष भरा रहा था लेकिन बेटी की सुरक्षा के लिए उन्होंने सब कुछ झेला।

पुरुषों का टॉयलेट करती थी इस्तेमाल

पेचियम्मल के द्वारा ऐसा बताया गया कि उन्होंने पेंटिंग से लेकर नारियल की दुकान तक, कई तरह के छोटे-मोटे काम करके अपनी बेटी को पाला है। अब पेचियम्मल की बेटी का विवाह हो चुका है। पेचियम्मल का यही कहना है कि अब वह ऐसे ही आखिरी सांस लेना चाहती हैं।

बता दें मुत्थू उर्फ़ पेचियम्मल ने पुरुषों के टॉयलेट का भी इस्तेमाल किया और वह बस में पुरुषों वाली सीट पर ही बैठती थीं। इतना ही नहीं बल्कि उन्हें अपनी पहचान बदलने का भी कोई गम नहीं है। गांव में कुछ लोगों के अलावा किसी को नहीं पता था कि मुत्थु असल में एक महिला है।