क्या है राम के नाम की महिमा, जानें इन दो अक्षरों में कौन सा रहस्य छिपा है
हमारे वैदिक पुराणों और धर्म शास्त्रों के अनुसार अनादिकाल से जीवन की सभी बाधाओं से मुक्ति पाने के लिए जिसने भी “राम” नाम का स्तुति किया है उसे कभी भी जीवन में किसी भी प्रकार की निराशा नहीं मिली है । ये दो अक्षर का नाम सिर्फ नाम नहीं बल्कि सच्चे मोती हैं जो अन्य कसी भी हीरे मोती से अमूल्य है राम नाम बड़ा चमत्कारी मंत्र है, साधारण से दिखने वाले इस राम नाम के मंत्र में जो शक्ति छिपी हुई है वो किसी और चीज में नहीं मिल सकती |
आज हम आपको इसी दो अक्षर के “राम “नाम की महिमा के बारे में बताने वाले हैं और इससे जुड़ी एक कथा भी हम आपको बताएँगे |ये कथा है कबीर जी के पुत्र कमाल की |एक बार की बात है जब राम नाम के प्रभाव से कमाल द्वारा एक कोढ़ी का कोढ़ दूर हो गया तो कमाल को लगा की वो रामनाम की महिमा को समझ चूका है लेकिन उसकी इस बात से कबीर जी बिलकुल भी प्रसन्न नहीं हुए और उन्होंने कमाल को तुलसी जी के पास भेज दिया |
जब कमाल तुलसी जी के पास गया तो उन्होंने एक तुलसी के पत्र पर रामनाम लिखा और उस तुलसी के पत्र जल में डाला और केवल उस जल से जिसमे तुलसीदास जी ने राम का नाम लिखकर एक पत्र डाला था और उस तुलसी पत्र से उन्होंने 500 कोढ़ियों को ठीक कर दिया। तब कमाल को लगा की अच्छा राम नाम की इतनी महिमा है और तब कमाल ये समझने लगा कि तुलसीपत्र पर एक बार रामनाम लिखकर उसके जल से 500 कोढ़ियों को ठीक किया जा सकता है, रामनाम की इतनी महिमा हैं। लेकिन इसके बावजूद भी कबीर जी अपने पुत्र से संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने कमाल को भेज दिया संत सूरदास जी के पास।
जब कमाल संत सूरदास जी के पास गये तो वहाँ उन्होंने देखा की सूरदास जी ने गंगा में बहते हुए एक शव के कान में केवल राम शब्द का उच्चारण किया जिससे वो मुर्दा फिर से जीवित हो तब कमाल ने सोचा की राम शब्द में इतनी शक्ति है की किसी मृत व्यक्ति को भी जिन्दा कर सकती है और प्राण डाल सकती है और यह है राम शब्द की महिमा हैं।
तब कबीर जी ने अपने पुत्र से कहा, की यह भी नहीं है राम नाम की महिमा क्योंकि इतनी कम नहीं है |राम नाम के इस शब्द की महिमा उन्होंने अपने पुत्र को समझाया की इस राम नाम की महिमा इतनी है की कोई इसका वर्णन ही नहीं कर सकता उन्होंने कहा की
भृकुटि विलास सृष्टि लय होई।जिसके भृकुटि विलास मात्र से प्रलय हो सकता है, उसके नाम की महिमा का वर्णन तुम क्या कर सकोगे?
तुलसीदास जी का कहना है की राम ब्रह्म परमारथ रूपा। अर्थात्: ब्रह्म ने ही परमार्थ के लिए राम रूप धारण किया था।
रामनाम की औषधि खरी नियत से खाय।
अंगरोग व्यापे नहीं महारोग मिट जाय ।।
राम नाम महिमा म से जुड़ी एक और अन्य कथा
एक बार समुद्रतट पर एक व्यक्ति बैठा हुआ था जो की बहुत ही चिंता में डूबा हुआ था उसी वक्त उधर से विभीषण निकले। उन्होंने उस चिंतातुर व्यक्ति से पूछा की क्यों भाई! तुम किस बात की चिंता में पड़े हो?तब उसने विभीषण से कहा की मुझे समुद्र के उस पार जाना हैं परंतु मेरें पास समुद्र पार करने का कोई भी साधन नहीं हैं और मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा है की अब मै क्या करूँ और मुझे इसी बात की चिंता हैं। तब विभीषण अरे भाई, तो इसमें इतने अधिक उदास क्यों होते हो?
ऐसा कहकर विभीषण ने एक पत्ते पर एक नाम लिखा तथा उसकी धोती के पल्लू से बाँधते हुए कहा इसमें म मैंने एक तारक मंत्र बाँधा हैं और तू बस इश्वर पर श्रद्धा रखकर तनिक भी घबराना मत और पानी पर चलते आना। तुम जरुर हो जाओगे |विभीषण के बातों पर विश्वास रखकर वह व्यक्ति समुद्र की ओर आगे बढ़ने लगा और धीरे धीरे वह व्यक्ति सागर के सीने पर नाचता-नाचता पानी पर चलने लगा।
वह व्यक्ति जब समुद्र के बीच में पहुंचा तब उसके मन में संदेह हुआ कि विभीषण ने ऐसा कौन सा तारक मंत्र लिखकर मेरे पल्लू से बाँधा हैं कि मैं समुद्र पर सरलता से चल सकता हूँ। जरा मै इसे देख लेता हूँ और जब उस व्यक्ति ने अपने पल्लू में बँधा हुआ पत्ता खोला और पढ़ा तो उस पर दो अक्षर में केवल राम नाम लिखा हुआ था। राम नाम पढ़ते ही उसकी श्रद्धा तुरंत ही अश्रद्धा में बदल गयी और उसने कहा की अरे ! यह कोई तारक मंत्र हैं यह तो सबसे सीधा सादा राम नाम हैं और जैसे ही उसके मन में इस प्रकार की अश्रद्धा उपज गयी उसी वक्त वो व्यक्ति समुद्र में डूब गया और उसकी मृत्यु हो गयी
इस कथा का सार यही है की हमे कभी भी श्रद्धा और विश्वास के मार्ग में किस भी प्रकार का कोई संदेह नहीं करना चाहिए क्योकि अविश्वास एवं अश्रद्धा से हमारे जीवन में ऐसी विकट परिस्थितियाँ पैदा हो जाती हैं कि मंत्र जप से काफी ऊँचाई तक पहुँचा हुआ साधक भी विवेक के अभाव में संदेहरूपी षड्यंत्र का शिकार होकर अपना अति सरलता से पतन कर बैठता हैं।