एक रुपया लेकर दुल्हन को लक्ष्मी रुप में किया स्वीकार और गोशाला में दिया 1 लाख का दान, पूर्व नौसैनिक के बेटे की शादी में कायम की मिसाल

समाज में चल रही बुराइयों में से एक दहेज प्रथा है। यह मानव द्वारा बनाई गई एक ऐसी सभ्यता है, जो दुनियाभर में कई सारी जगह फैली हुई है। दहेज लेना और दहेज देना दोनों ही अपराध होता है परंतु इसके बावजूद भी लोग ऐसा करते हैं। अक्सर कई मामले हमें देखने और सुनने को मिलते रहते हैं, जिसमें दहेज की वजह से लड़की को परेशान किया जाता है। यहां तक कि लड़की को घर से भी बाहर निकाल दिया जाता है। लेकिन समय के साथ साथ अब काफी सुधार देखने को मिल रहा है।

कुछ लोग विभिन्न आयोजनों में फिजूलखर्ची को भी रोक रहे हैं। वहीं शिक्षित लोग दहेज मुक्त शादी को बढ़ावा दे रहे हैं। कुछ ऐसा ही उदाहरण रेवाड़ी में देखने को मिला है। जी हां, पूर्व नौसैनिक के इंजीनियर बेटे की बिना दहेज की शादी चर्चा का विषय बनी हुई है। उन्होंने अपने इंजीनियर बेटे की शादी में ना सिर्फ एक रुपया और नारियल लेकर दुल्हन को लक्ष्मी रुप में स्वीकार किया, अपितु गौशाला में एक लाख रुपए का दान देकर गौ माता के लिए दिए गए दान का महत्व भी समझाया।

पूर्व नौसैनिक के इंजीनियर बेटे की बिना दहेज की शादी

हम सभी लोग आए दिन समाज में प्रतिष्ठा और रुतबा दिखाने के उद्देश्य से महंगी शादियों की चर्चा तो सुनते रहते हैं। दिखावे के इस दौर में लाखों का दहेज लेकर शाही अंदाज में शादी करने की होड़ लगी है लेकिन समझदार और पढ़े-लिखे परिवारों में बिना दहेज की शादी का चलन भी चल पड़ा है। सनातन परंपरा में कन्यादान और गोदान का महत्व भी कम नहीं है। आज हम आपको जिस खबर के बारे में बता रहे हैं यह रेवाड़ी के विजयनगर से सामने आया है। यहां के निवासी पूर्व नौसैनिक ने कन्यादान और गोदान की मिसाल कायम कर समाज के लिए मिसाल कायम की है।

जी हां, रेवाड़ी के कोनसीवास रोड स्थित विजय नगर के बाबूलाल और उनकी पत्नी निर्मला यादव ने कन्या को लक्ष्मी और गौ माता को संरक्षण देने की पहल करके नई मिसाल कायम की है। इस दंपति ने अपने इंजीनियर बेटे यशु की शादी गांव पहाड़ी निवासी अशोक कुमार की एमएसई पास बेटी निकिता से की है। दूल्हा-दुल्हन ने दोनों परिवारों की आपसी सहमति से बिना दहेज शादी करने का प्रस्ताव रखा। वहीं परिवार ने भी इस प्रस्ताव को स्वीकार किया। इसके साथ ही दहेज की बजाय गौशाला में दान करने का फैसला लिया। यशु के पिता खुद पूर्व नौसैनिक हैं और इन दिनों मर्चेंट नेवी में कार्यरत हैं।

“दहेज लेकर बेटी को बोझ क्यों माना जाए”

यशु के पिता का ऐसा मानना है कि जब लड़की स्वयं लक्ष्मी का रूप है, तो दहेज लेकर बेटी को बोझ क्यों माना जाए। दहेज के पैसों को यदि गौ माता की सेवा में लगाया जाए, तो कन्यादान और गोदान दोनों का पुण्य प्राप्त होता है। उन्होंने तीन गायों और उनके संरक्षण के लिए अलग-अलग समितियों को एक लाख एक हजार रुपए का दान दिया है।

भारतीय गो रक्षक दल के प्रधान प्रदीप डागर, गो संरक्षण दल बावल एवं रेवाड़ी की रामतलाई उपचार शाला ने इस पहल का स्वागत किया है। वहीं परिवार और समाज के साथ-साथ इष्ट मित्रों राजेश कौशिक, विजय कुमार आदि का कहना है कि इस शादी का यह संदेश है कि बेटी को लक्ष्मी मानकर ससुराल में मान दिया जाए तो किसी भी पिता के लिए बेटी बोझ नहीं होगी। यह स्वस्थ परंपरा समाज के लिए बहुत ही आवश्यक है। बता दें अब यह शादी काफी चर्चा का केंद्र बनी हुई है।