‘बॉर्डर’ फिल्म का भैरोंसिंह असल जिंदगी में आज भी है जिंदा, सेना मेडल जीतने वाले इस जांबाज़ को नहीं मिल रही कोई सुविधा

1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध पर 1997 में ‘बॉर्डर’ मूवी बनाई गई थी. इस मूवी में सुनील शेट्टी ने भैरोंसिंह की दमदार भूमिका अदा की थी. बॉर्डर मूवी में भैरोंसिंह के शहीद होने वाला सीन देख सभी दर्शक काफी ज्यादा भावुक हुए थे लेकिन क्या आप लोग जानते हैं कि बॉर्डर फिल्म में सही दिखाए जाने वाले रियल हीरो भैरोंसिंह अपनी मातृभूमि पर गुमनामी की जिंदगी व्यतीत कर रहे हैं. जानकारी के लिए बता दे धरा शेरगढ़ के सोलंकियातला में जन्मे भैरोंसिंह राठौड़ को बीएसएफ की 1971 में जैसलमेर के लोंगेवाला पोस्ट पर 14 बटालियन मैं तैनात किया गया था. यहीं पर भारत के इस वीर पुत्र ने अपने शौर्य का परिचय देते हुए पाकिस्तान के सैनिकों को हार का मजा चखाया था.

गौरतलब है कि भारत पाकिस्तान सीमा पर लोंगेवाला में पोस्टिंग हुए कैप्टन कुलदीप सिंह ने अपने 120 सैनिकों की टुकड़ी के साथ पाकिस्तानी सेना का डटकर सामना करते हुए उनके टैंकों को ध्वस्त करते हुए पाकिस्तान को भारत के सामने घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था. इस युद्ध के दौरान शेरगढ़ सुरमा भैरोंसिंह पाकिस्तान के करीब 30 सैनिकों को ढेर कर दिया था. जानकारी के लिए बता दें इसे युद्ध पर सन 1997 में रिलीज हुई मूवी ‘बॉर्डर’ में सुनील शेट्टी ने इस शूरवीर भैरोंसिंह का दमदार किरदार अदा किया था. इस मूवी में राठौड़ को शहीद बताया गया. लेकिन वह आज भी बड़े ही जज्बे के साथ अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं. भारत पाकिस्तान के युद्ध के दौरान भैरोंसिंह शहीद नहीं हुए थे. इस मामले पर भैरोंसिंह का कहना था कि बॉर्डर फिल्म में उनके रोल को दिखाना काफी ज्यादा गर्व की बात है. लेकिन उन्हें शहीद न होते हुए भी मूवी में शहीद होते दिखाना काफी गलत बात है. गौरतलब है कि 1971 में पाकिस्तान के सैनिको के सामने डटकर खड़े होने वाले भैरोंसिंह को देश के तत्कालीन मुख्यमंत्री बरकतुल्लाह खान ने सेना मेडल से नवाजा था.

हालांकि अब इस शूरवीर को बीएसएफ की तरफ से मिलने वाले लाभ और पेंशन नहीं मिल पा रही है. जिसके चलते अब वह गुमनामी का जीवन व्यतीत कर रहे हैं. जानकारी के लिए बता दें 1963 में बीएसएफ में भर्ती होकर भैरोसिंह 1987 में रिटायर हो गए थे. लेकिन अपनी जिंदगी के 75 पूर्व साल पूरे करने के बाद भी रहे अपना पूरा दिन भारतीय सेना के जवान की तरह व्यतीत करते हैं और आज भी पूरी तरह स्वस्थ है.

भैरोसिंह का कहना है कि, ‘लोंगेवाला लड़ाई को जीते हुए 48 साल भी चले हैं लेकिन आज भी कुछ लोगों को तो यह भी मालूम नहीं होगा कि आखिरकार यह लोंगेवाला है कहां. 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान मिली जीत ऐतिहासिक जीत थी. मैं चाहता हूं कि जिस तरह गुलाम भारत को आजाद कराने वाले वीरों की कहानी बच्चों को पता है ठीक उसी तरह आजाद भारत के सैनिकों की दास्तां भी उन्हें सुनाई जाए. साल दिसंबर में जंग के दिनों की यादें ताजा होती है. भारत पाकिस्तान की 1971 में लड़ी गई यह लड़ाई दुनिया की ऐसी लड़ाई थी जो केवल 13 दिन तक चली थी. 16 दिसंबर सन 1971 में पाकिस्तान ने अपनी हार मान भारत के सामने सरेंडर कर दिया था. इस दिन को भारत में विजय दिवस के नाम से भी सेलिब्रेट किया जाता है.’