कई भिखारियों को Entrepreneur बना चुके हैं बनारस के चंद्र मिश्रा, इस आईडिया के भीख की समस्या कर रहे हैं खत्म

जब भी हम कभी घर से बाहर जाते हैं, तो सड़क के किनारे हमें बहुत से भिखारी भीख मांगते हुए नजर आते हैं। वैसे आप सभी लोग किसी भिखारी को क्या दे सकते हैं? कुछ पैसे, थोड़ा खाना, अपने पुराने कपड़े और इससे ज्यादा आप क्या देंगे? लेकिन आज हम आपको इस लेख के माध्यम से एक ऐसे शख्स के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसने भीख में भिखारियों को बिजनेस का आईडिया दिया है। जी हां, इस शख्स ने भिखारियों को ऐसा कुछ दिया है जिसने कई भिखारियों को Entrepreneur/उद्यमी बना दिया है।

वह कहते हैं ना “डोंट डोनेट, इन्वेस्ट।” यह विचार सुनने में जितना सरल है, उतना ही कारगर भी है। अगर आपकी सोच अच्छी हो, तो उसमें इतनी शक्ति होती है कि वह सही दिशा में समाज का निर्माण करने के साथ-साथ उसे सही राह भी दिखा सकते हैं। बनारस के चंद्र मिश्रा का यह कमाल का आइडिया है। बात दें चंद्र मिश्रा लंबे समय से समाज सेवा कर रहे हैं। उनका सबसे पसंदीदा कार्य गरीब बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा देना है।

चंद्र मिश्रा कहते हैं कि सब कर रहा था पर ऐसा लग रहा था कि यह काफी नहीं है। अगर शिक्षा मिले पर रोजगार नहीं तब भी स्थिति वही रहेगी जो आज है। इसलिए जरूरी है कि शिक्षा के साथ रोजगार भी पैदा किया जाए। चंद्र मिश्रा अपने शहर के भिखारियों को मुक्त कराना चाहते हैं। चंद्र मिश्रा इसके लिए ना सिर्फ लोगों को डोनेशन की जगह निवेश के लिए मनाते हैं बल्कि भिखारियों को पैसों का सही इस्तेमाल किस प्रकार करना चाहिए। बचत और उससे अपना बिज़नेस शुरू करने में भी सहायता कर रहे हैं।

शुरुआत में भिखारियों को समझाना था मुश्किल

जब कोरोना काल के दौरान लोग अपने घरों में बंद थे तब बनारस समेत पूरे देश में गरीबों और भिखारियों की हालत बहुत ज्यादा खराब हो गई थी। भिखारी रोज मांगते और रोज खाते थे। लेकिन कोरोना महामारी में सब कुछ बंद हो गया था। ऐसी स्थिति में यह जरूरी हो गया कि कम से कम अपने शहर से भिखारियों को खत्म करना होगा। इसीलिए उन्हें शहर से बाहर नहीं किया जाना चाहिए बल्कि भिखारियों को शिक्षित करना होगा।

चंद्र मिश्रा का ऐसा कहना है कि जब कोरोना का कहर शांत हुआ, तो जनवरी 2021 में उन्होंने भिखारियों को ऑन्त्रप्रेन्योर बनाने के उद्देश्य से Beggars Corporation की शुरुआत की। भीख मांगने वालों को रोजगार के लिए प्रशिक्षित करना इसका लक्ष्य था। इसके साथ ही पैसों का मैनेजमेंट समझाना भी। चंद्र मिश्रा ऐसा बताते हैं कि शुरुआत में तो भिखारियों को समझाना काफी मुश्किल हुआ था।

वो कहते हैं भले ही यह कार्य अभी भी सरल नहीं है परंतु किसी तरह 12 परिवारों के 55 भिखारी मेरी बात को समझने में लग गए और उन्होंने सबसे पहले पैसों के मैनेजमेंट को सीखा। वह भीख मांग कर जो भी पैसा कमाते थे, वह उसका सही निवेश कैसे करें? इसको सिखाया। इसके बाद सरकारी योजनाओं से जोड़ा ताकि वह राशन, दवा जैसी जरूरतें वहां से पूरी कर सकें और भीख में मिले हुए पैसों से कोई रोजगार आरंभ कर पाएं।

चंद्र मिश्रा और उनकी टीम भिखारियों को उनकी स्किल के मुताबिक काम सिखाने में जुट गई और एक साल में ही 55 भिखारियों को ऑन्त्रप्रेन्योर बना दिया। जो भी लोग भिखारी से ऑन्त्रप्रेन्योर बने थे वह जूट और कागज के बैग बनाते हैं, डेकोरेशन के आइटम बनाते हैं, सिलाई-कढ़ाई का काम करते हैं। वही लोग अब प्रोडेक्ट स्टॉल लगा कर अपना सामान बेच रहे हैं। इसके साथ ही स्थानीय दुकानदारों, होटल और विदेशों से आने वाले पर्यटकों को भी बेचते हैं। बता दें कि शुरुआत में तो उनकी बुनी हुई चीजों की मार्केटिंग चंद्र मिश्रा की टीम ने की। इसके बाद में इन नए व्यवसायियों को मार्केटिंग के गुण सिखाए गए।

जरूरी है शिक्षा

चंद्र मिश्रा का ऐसा कहना है कि रोजगार के अलावा इन भिखारियों की अगली पीढ़ी के लिए शिक्षा भी बहुत ही आवश्यक है। इसके लिए उन्होंने एक मॉर्निंग स्कूल ऑफ़ लाइफ की स्थापना की है, जहां सामान्य शिक्षा दी जाती है। इतना ही नहीं बल्कि इसके बाद बच्चों को सरकारी स्कूलों में दाखिला भी दिलवा दिया जाता है। चंद्र मिश्रा की टीम इन बच्चों को भी प्रशिक्षण दे रही है ताकि वह अपना खुद का कुछ बिजनेस करें, वह नौकरियों की लाइन में ना लगें।

चंद्र मिश्रा कहते हैं कि मुझे पता चला कि भारत में कुल 4,13,670 भिखारियों को सालाना 34,242 करोड़ लोग दान करते हैं, तो मैंने सोचा कि अगर उस राशि को निवेश किया जाए, तो इससे और अधिक पैसा कमाया जा सकता है। अगर दान किए गए पैसों का इस्तेमाल रोजगार पैदा करने और प्रशिक्षण देने के लिए किया जाए, तो इससे अर्थव्यवस्था की तस्वीर बदली जा सकती है।

बताते चलें कि पुणे के डॉक्टर अभिजीत सोनवाणे भी भिखारियों को समझा-बुझाकर उन्हें नौकरी दिलाने या फिर सिलाई चाट की दुकान जैसे छोटे-मोटे व्यवसाय खोलने में सहायता करते हैं। उनकी इस कोशिश से 105 भिखारी अब तक नौकरी करने लगे हैं और करीब 300 से अधिक अपना खुद का व्यवसाय शुरू कर चुके हैं। इतना ही नहीं बल्कि अभिजीत भिखारियों के बच्चों को शिक्षा भी दे रहे हैं और उन्हें सरकारी योजनाओं के लाभ भी दिलाने में मदद करते हैं और प्रशिक्षण देते हैं। चंद्र मिश्रा और अभिजीत जैसे लोग समाज के लिए मिसाल हैं।