हिंदू धर्म की इन 5 परंपराओं के आगे विज्ञान भी है नतमस्तक, यहाँ जानिए क्या कहता है साइंस

हिंदू धर्म की ऐसी बहुत सी परंपराएं हैं, जो आज से नहीं बल्कि सदियों से चली आ रही हैं। सनातन धर्म से जुड़े रीति-रिवाज और परंपराएं दुनिया को काफी आकर्षित करती हैं। जैसा कि हम सभी लोग जानते हैं, भारतीय संस्कृति कई जातियों और धर्मों का मिलाजुला संगम है। यह पूरी दुनिया की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है, जहां पर हर रिती-रिवाज आस्था से जुड़ी हुई होती है और जिसके अपने अपने नियम भी होते हैं परंतु इनमें से ऐसे बहुत से रीति-रिवाज हैं जिनको विज्ञान भी सही मानता है।

जी हां, हिंदू धर्म में बड़ों के सामने नतमस्तक होना और विवाहित महिलाओं का अपनी मांग में सिंदूर लगाना जैसी प्राचीन परंपरा और संस्कार हैं, जो आज से नहीं बल्कि सदियों से चलती आ रही हैं। आजकल के आधुनिक युग में भी इन परंपराओं का पालन किया जा रहा है। हिंदू धर्म की इन परंपराओं के आगे विज्ञान भी नतमस्तक है। तो चलिए जानते हैं इन परंपराओं से जुड़े हुए वैज्ञानिक तथ्यों के विषय में।

नमस्ते करना

मौजूदा समय में भी भारत के अंदर यह देखा गया है कि एक-दूसरे के सम्मान में लोग नमस्ते करते हैं। इसके पीछे का एक वैज्ञानिक तर्क भी है। विज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो जब हम नमस्ते करते हैं तो हम अपने दोनों हाथों को जोड़ते हैं। ऐसे में हमारी उंगलियां एक दूसरे के स्पर्श में आ जाती हैं। इस दौरान एक्यूप्रेशर से हमारी आंखों, कानों और दिमाग पर सकारात्मक असर पड़ता है, जिससे किसी भी प्रकार के संक्रमण का खतरा नहीं रहता है। मौजूदा समय में कोरोना महामारी के दौरान वायरस संक्रमण से बचने के लिए सभी लोग एक-दूसरे को नमस्ते कर रहे हैं। अगर नमस्ते किया जाए तो उसके सामने वाले के शरीर के कीटाणु आप तक नहीं पहुंच सकते।

तिलक लगाना

आप लोगों ने यह देखा होगा कि हिंदुओं में जब कोई शुभ कार्य या पूजा-पाठ किया जाता है तो उस दौरान माथे पर लगाया जाता है। यह परंपरा आज से नहीं बल्कि सदियों से चलती आ रही है। तिलक लगाने के पीछे वैज्ञानिक तथ्य यह है कि हमारे माथे के बीचो-बीच आज्ञाचक्र होता है। यही जगह पीनियल ग्रंथि का होता है। जब उस जगह पर तिलक लगाया जाता है तो पीनियल ग्रंथि का उद्दीपन होता है। इसकी वजह से शरीर के सूक्ष्म और स्थूल कॉम्पोनेंट जागृत होने लगते हैं। माथे पर तिलक लगाने से बीटाएंडोरफिन और सेराटोनिन नामक रसायनों का स्राव भी संतुलित रहता है। इससे मस्तिक शांत होता है। इतना ही नहीं बल्कि एकाग्रता भी बढ़ती है, इससे गुस्सा और तनाव भी कम हो जाता है और सकारात्मक सोच विकसित होने लगती है।

बड़ों के पैर छूना

जैसा कि हम सभी लोग यह भली-भांति जानते हैं कि जब हम छोटे थे, तभी से यह हमको यह सीख दी जाती थी कि बड़ों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उनके चरण स्पर्श करना चाहिए। विज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो पैर छूने से दिमाग से निकलने वाली सकारात्मक उर्जा हाथों और सामने वाले पैरों से होते हुए एक चक्कर पूरा कर लेती है। इसकी वजह से नकारात्मकता समाप्त हो जाती है। इतना ही नहीं बल्कि ऐसा करने से अहंकार दूर हो जाता है और मनोवैज्ञानिक रूप से प्रेम, समर्पण का भाव उत्पन्न होने लगता है, जो हमारे व्यक्तित्व को प्रभावशाली बनाता है।

मांग में सिंदूर भरना

हम सभी लोग यह देखते हैं कि हिंदू धर्म की महिलाएं शादी के बाद अपनी मांग में सिंदूर भरती हैं। अगर हम इसके पीछे वैज्ञानिक तथ्यों को समझने की कोशिश करें तो सिंदूर को सिर के जिस हिस्से पर लगाया जाता है वह बहुत ही कोमल रहता है। इसी जगह को ब्रह्मरंध्र कहा जाता है। आपको बता दें कि सिंदूर में पारा होता है, जो एक दवा की तरह कार्य करता है और महिलाओं का ब्लड प्रेशर कंट्रोल रखने में काफी सहायकमंद माना गया है। यह तनाव और अनिद्रा की समस्या को भी कंट्रोल करने में मददगार है। इतना ही नहीं बल्कि यौन उत्तेजना में भी वृद्धि करता है। यही कारण है कि कुंवारी लड़कियों और विधवा महिलाओं के सिंदूर लगाने पर पाबंदी लगाई गई है।

जमीन पर बैठकर खाना

जैसे-जैसे समय बदलता जा रहा है, वैसे-वैसे लोगों के रहन-सहन के तौर तरीकों में भी बदलाव देखने को मिल रहा है। मौजूदा समय में सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर में डाइनिंग टेबल पर खाना खाने का चलन काफी बढ़ चुका है परंतु अगर हम प्राचीन काल की बात करें तो पहले लोग जमीन पर बैठ कर खाना खाया करते थे। लेकिन आज भी भारत के अंदर ऐसे बहुत से घर हैं, जहां पर परिवार के सदस्य जमीन पर ही बैठकर खाना खाते हैं। जब जमीन पर बैठा जाता है तो लोग पालथी लगा कर बैठते हैं और भोजन करते हैं। वास्तव में देखा जाए तो पालथी लगाकर बैठना एक प्रकार की योग क्रिया होती है, इससे हमारा डाइजेशन सिस्टम दुरुस्त रहता है। इसके साथ ही जमीन पर बैठकर खाना खाने की वजह से आपसी प्रेम बना रहता है।