34 कंपनियां, अरबों का टर्न ओवर…ये हैं ट्विन टावर के मालिक, जानिए इनकी पूरी कहानी

यूपी के नोएडा में स्थित ट्विन टावर महज 8 सेकंड में ढहा दिया गया। 32 और 29 मंजिला दोनों इमारतें अब पूरी तरह से मलबे में तब्दील हो चुकी हैं। जब ट्विन टावर में धमाका हुआ तो आसमान धूल से भर गया और बिल्डिंग कुछ ही सेकंड में पूरी तरह से ढह गई। ट्विन टावरों को बनने में करीब 200 करोड़ रुपये से अधिक का खर्च आया है। वहीं इन्हें गिराने की लागत 20 करोड़ रुपये बताई गई है।

ऐसे में एक सवाल हर किसी के मन में उठ रहा है कि आखिर इसे बनाने वाला शख्स कौन है? इन ट्विन टॉवर्स का मालिक कौन है? और कैसे उसने इतनी बड़ी इमारत खड़ी कर दी। तो चलिए आज हम आपको ट्विन टावर के मालिक के बारे में पूरी कहानी बताते हैं।

कौन है ट्विन टावर का मालिक?

आपको बता दें कि इन ट्विन टावर का निर्माण सुपरटेक बिल्डर ने कराया था। आरके अरोड़ा इस कंपनी के मालिक हैं। आरके अरोड़ा के नाम कुल 34 कंपनियां हैं। यह कंपनियां सिविल एविएशन, कंसलटेंसी, ब्रोकिंग, प्रिंटिंग, फिल्म्स, हाउसिंग फाइनेंस, कंस्ट्रक्शन तक काम करती हैं। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में यह भी दावा किया जाता है कि आरके अरोड़ा ने कब्रगाह बनाने तक की कंपनी भी खोली है।

कैसे अरोड़ा ने शुरू की कंपनी?

7 दिसंबर 1995 को आरके अरोड़ा ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर इस कंपनी की शुरुआत की थी। कंपनी ने 12 शहरों में रियल स्टेट प्रोजेक्ट लॉन्च किया है, इनमे नोएडा, ग्रेटर नोएडा, यमुना विकास प्राधिकरण क्षेत्र, मेरठ, दिल्ली-एनसीआर समेत देशभर के कई शहर शामिल हैं। देखते ही देखते अरोड़ा ने रियल स्टेट को अपना नाम बना लिया। इसके बाद अरोड़ा ने एक के बाद एक 34 कंपनियां खोलीं। यह सभी अलग-अलग कार्यों के लिए थीं।

आरके अरोड़ा ने पहले सुपरटेक लिमिटेड कंपनी की शुरुआत की थी। इसके 4 साल बाद 1999 में उनकी पत्नी संगीता अरोड़ा ने सुपरटेक बिल्डर्स एंड प्रमोटर्स प्राइवेट लिमिटेड नाम से कंपनी खोली। आरके अरोड़ा में अपने बेटे मोहित अरोड़ा के साथ मिलकर पॉवर जेनरेशन, डिस्ट्रीब्यूशन और बिलिंग सेक्टर में भी काम शुरू कर दिया, जिसके लिए सुपरटेक एनर्जी एंड पॉवर प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी बनाई गई।

कैसे खड़ी हो गई 32 मंजिल की इमारत?

23 नवंबर 2004 से कहानी की शुरुआत होती है, जब नोएडा अथॉरिटी ने सेक्टर-93ए स्थित प्लॉट नंबर-4 को एमराल्ड कोर्ट के लिए आवंटित किया। आवंटन के साथ ग्राउंड फ्लोर समेत 9 मंजिल तक मकान बनाने की परमिशन मिली। 2 साल बाद 29 दिसंबर 2006 को अनुमति में संशोधन कर दिया गया। संशोधन करके सुपरटेक को 9 की जगह 11 मंजिल तक फ्लैट बनाने की परमिशन नोएडा अथॉरिटी ने दे दी।

इसके बाद अथॉरिटी ने टावर बनाने की संख्या बढ़ा दी। पहले 14 टावर बनने थे, जिसको बाद में बढ़ाकर 15 कर दिया गया और फिर 16 कर दिया गया। वहीं 2009 में इसमें फिर से इजाफा किया गया। नोएडा अथॉरिटी ने फिर से 17 टावर बनाने का नक्शा 26 नवंबर 2009 को पास किया। 2 मार्च 2012 को टावर 16 और 17 के लिए फिर बदलाव किए। इस संशोधन के बाद इन दोनों टावर को 40 मंजिल तक करने की परमिशन मिल गई। 121 मीटर इसकी ऊंचाई तय की गई।

वही इन दोनों टावर के बीच की दूरी महज 9 मीटर रखी गई जबकि नियम के अनुसार दो टावरों के बीच की यह दूरी कम से कम 16 मीटर होनी चाहिए। परमिशन मिलने के बाद सुपरटेक समूह ने एक टावर में 32 मंजिल तक जबकि दूसरे में 29 मंजिल तक निर्माण भी पूरा कर दिया। इसके बाद मामला कोर्ट पहुंच गया और ऐसा पहुंचा कि टावर बनाने में हुए भ्रष्टाचार की परतें एक बाद एक खुलती चली गईं। अब दोनों टावर को गिरा दिया गया।

8 साल क्यों लग गए इसे गिराने में?

इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुपरटेक कंपनी सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी। कोर्ट में करीब सात साल तक कानूनी लड़ाई लड़ी गई। सुप्रीम कोर्ट ने 31 अगस्त, 2021 में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। सुप्रीम कोर्ट ने तीन महीने के भीतर इमारतों को गिराने का आदेश दिया। इसके बाद तारीख को आगे बढ़ाकर 22 मई 2022 कर दी गई लेकिन समय सीमा में तैयारी पूरी ना हो पाने की वजह से तारीख को फिर से बढ़ा दी गई। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार, टावर टावर रविवार को गिरा दिया गया।

दिवालिया हुई कंपनी

ट्विन टावर के गिराने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आरके अरोड़ा की स्थिति लगातार खराब होती जा रही थी। करीब 200 करोड़ से ज्यादा की लागत से इसे बनाया गया था। इनमें 711 फ्लैटों की बुकिंग भी हो चुकी थी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बुकिंग अमाउंट और 12% ब्याज की रकम मिलाकर 652 निवेशकों के दावे सेटल करने थे। कंपनी की हालत लगातार खराब होती जा रही थी। इनमें 300 से ज्यादा ने रिफंड का विकल्प अपनाया, जबकि बाकी ने मार्केट या बुकिंग वैल्यू और ब्याज की रकम जोड़कर जो राशि बनी उसके अनुसार दूसरी परियोजनाओं में प्रॉपर्टी ले ली। प्रॉपर्टी की कीमत कम या ज्यादा होने पर पैसा रिफंड किया गया या अतिरिक्त रकम जमा कराई गई। ट्विन टावर के 59 निवेशकों को अभी तक रिफंड नहीं मिल पाया है।

25 मार्च को सुपरटेक के इंसॉल्वेंसी में जाने से रिफंड की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई। अभी 14 करोड़ से ज्यादा का रिफंड दिया जाना बाकी है। इंसोल्वेंसी में जाने के बाद मई में कोर्ट को बताया गया कि सुपरटेक के पास रिफंड का पैसा नहीं है। इसी वजह से कंपनी को भारी नुकसान झेलना पड़ा। इसी साल मार्च में सुपर टेक कंपनी को दिवालिया घोषित कर दिया गया।

एक जानकारी के अनुसार, सुपरटेक पर करीब 432 करोड़ रुपए का कर्ज है। यह कर्ज यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के नेतृत्व में बने बैंक के कंसोशिर्यम से लिया गया था। कर्ज नहीं चुकाने पर यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने कंपनी के खिलाफ याचिका दायर की थी, जिसके बाद NCLT ने बैंक की याचिका स्वीकार कर इन्सॉल्वेंसी की प्रक्रिया का आदेश दिया था।

सुपरटेक ने क्या कहा?

आपको बता दें कि ट्विन टावर गिराए जाने के मामले में सुपरटेक का बयान आया है, जिसमें यह कहा गया कि “प्राधिकरण को पूरा भुगतान करने के बाद हमने टावर का निर्माण किया था। हालांकि, माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने तकनीकी आधार पर निर्माण को संतोषजनक नहीं पाया और दोनों टावरों को ध्वस्त करने का आदेश जारी किया।”

बयान में कहा कि हम सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का सम्मान करते हैं और उसे लागू करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हमने एक विश्व प्रसिद्ध कंपनी एडिफिस इंजीनियरिंग को ध्वस्त का काम सौंपा है, जिनके पास ऊंची इमारतों को सुरक्षित रूप से गिराने में विशेषता है। हमने करीब 70000 से ज्यादा लोगों को फ्लैट्स तैयार करके दे दिए हैं। बाकी लोगों को भी निर्धारित समय में दे दिया जाएगा।